काश! मैं भी उनकी तरह आजाद होता,
नीले झरने का पानी पीकर,
सम्पूर्ण नभ को छान डालता,
मेरा लक्ष्य भी क्षितिज होता,
और शून्य अंबर मेरा पथ,
हवा की तरंगों को चीर देता,
काश! मैं भी उनकी तरह आजाद होता
कष्ट, भय और तकलीफों से भरे जीवन में ,
कहीं दूर जा पहूँचता,
जीवन की मोहमाया को छोड़कर प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ बनाता
न किसी की राहों में चलता,
न किसी के विश्वास को तोड़ता,
काश! मैं भी उनकी तरह आजाद होता
छल कपट से पूर्ण मनुष्यों की तरह,
एक पल में एक चेहरा और दूसरे पल में दूसरा न दिखाता,
असत्य की दीवार तोड़
सम्पूर्ण जीवन झूठ की इमारत बनाने में न लगाता,
बात-बात पर न किसी के भीतर लोभ जगाता ,
न किसी की खुशी को एक पल में छीनता
काश! मैं भी उनकी तरह आजाद होता
सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर चैन की उड़ान भरता,
परंतु, अहंकार से अंधे हुए मानव से,
मुझे कौन मुक्त करेगा?
काश! मैं उस विनाशकारी अहं को चूर- चूर कर पाता
काश! मैं भी उनकी तरह आजाद होता