हिन्दी फिल्मों के सौ वर्षों से कुछ अधिक के इतिहास में कुल ढाई सुपर स्टार हुए हैं। पहले राजेश खन्ना, जिनके लिये सुपर स्टार शब्द इज़ाद हुआ, दूसरे अमिताभ बच्चन, जिनके बारे में माना जाता था कि अपने शिखर दौर में नंबर गेम में एक से दस नंबर तक वही थे और फिर आधा सुपर स्टार शाहरुख खान।
स्टारकिड्स का जलवा भी हर दौर में रहा जिसकी सबसे अनुपम सौगात के रूप में फ़िल्मी दुनिया को राज कपूर मिले। पृथ्वीराज कपूर के खानदान के लगभग हर पुरुष सदस्य ने फिल्मों में भाग्य आजमाया, जिनमें शम्मी कपूर, शशि कपूर और ऋषि कपूर ने सितारा हैसियत भी पाई। बाकी रणधीर कपूर, कुणाल कपूर, राजीव कपूर आदि कुछ दिन चमक बिखेर कर कहीं अस्त हो गए। संजय दत्त, सनी देओल, अनिल कपूर जैसे कुछ नाम फिल्मी परिवारों से उभरे और अपने परिश्रम, भाग्य और अपने बैकग्राउंड के लगातार समर्थन से लंबे समय तक सितारा चमक बिखेरते रहे। इन सब सितारों में कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने कई सुपर हिट फ़िल्में दी लेकिन अचानक किसी अँधेरी दुनिया में गम हो गए। इनमें कुछ स्टारकिड्स भी थे तो कुछ ऐसे जिन्होंने अपने अभिनय के दमपर पहचान बनायी और यकायक पर्दे से गायब हो गए।
साल 1964 में सत्येन बोस द्वारा निर्देशित फिल्म दोस्ती को दर्शक आज भी भूले नहीं होंगे, इस फिल्म ने रिलीज़ होते ही पूरे देश में धूम मचा दी, इसके सभी गाने इतने पॉप्युलर हुए कि चारों तरफ़ उन्हीं की गूँज सुनाई देती थी। चाहे फिल्म की कहानी हो, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, रफ़ी साहब की मधुर आवाज़ हो या फिर सुशील कुमार और सुधीर कुमार की अदाकारी, इस फिल्म ने न सिर्फ़ देश, बल्कि विदेशों में भी लोगों को अपना दीवाना बना दिया था। यह फिल्म चौथे मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी शामिल हुई थी और सबसे बड़ी बात उस ज़माने में भी फिल्म ने 2 करोड़ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया था। फिल्म की रिलीज़ के साथ ही दोनों सितारे सुशील कुमार और सुधीर कुमार रातोंरात स्टार बन गए, पर ऐसा कुछ हुआ कि इतनी बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म देने वाले दोनों स्टार्स उसके बाद किसी और फिल्म में नज़र नहीं आए? आख़िर कहां गुम हो गए ये दोनों सितारे?
इस फिल्म की अपार सफलता के बाद एक प्रोड्यूसर दोनों ही एक्टर्स को अपनी एक फिल्म में लेना चाहते थे, लेकिन सुधीर कुमार ने साउथ की फिल्म बतौर लीड जॉइन कर ली थी, इसलिए उन्होंने यह फिल्म करने से मना कर दिया और प्रोड्यूसर्स ने सुशील कुमार को फिल्म के लिए मना कर दिया, दरअसल वे दोनों की जोड़ी को ही फिल्म में लेना चाहते थे। इसके बाद सुशील कुमार ने जयहिन्द कॉलेज से ग्रैजुएशन की पढाई पूरी की और एयर इंडिया में नौकरी करने लगे। 1971 से 2003 तक उन्होंने एयर इंडिया में नौकरी की और रिटायरमेंट के बाद अपने परिवार के साथ मुंबई के चेम्बूर इलाके में ही रहते हैं। सुधीर सावंत का 1993 में कैंसर के कारण निधन हो गया।
फ़िल्मी किस्सा इतना भर नहीं है। जिसने भी आमिर खान की फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’, संजय दत्त की ‘सड़क’, और अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी’ देखी होगी, वो दीपक तिजोरी को नहीं भुला होगा। ‘पहला नशा’ को छोड़कर उन्हें मूवी में लीड रोल देने से सभी परहेज करते रहे, जबकि सहायक अभिनेता के तौर पर सभी दर्शक उनके अभिनय के कायल रहे। दीपक ने वक्त के साथ अपना पेशा बदल दिया। साल 2003 में फिल्म ‘ऊप्स’ के उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। ‘बिग बॉस’ के पहले सीजन में वो नजर आए थे। हाल फिलहाल उन्होंने वेबसीरीज में एक्टिंग की है। आजकल नेपोटिज्म विवाद में महेश भट्ट को भी निशाने पर लेने की वजह से वह चर्चा में हैं।
एक और दौर की आपको याद दिलाते चलते हैं, याद कीजिये वह दौर जब राहुल रॉय की हेयर स्टाइल की लड़कियां दीवानी थीं। हर कोई उनकी मूवी ‘आशिकी’ के गाने गुनगुनाता था और सारे सेलून वाले राहुल रॉय की स्टाइल में कटिंग करना सीख गए थे। ‘आशिकी’ के बाद उन्होंने धड़ाधड़ फिल्में साइन कीं, जिनमें से बहुत सी फिल्म सफल नहीं हो पाईं, यहां तक कि आशिकी गर्ल अनु अग्रवाल के साथ भी बनाई ‘गजब तमाशा’ भी फ्लॉप साबित हुई। उनकी कई फिल्में चर्चा में रही थीं। कुछ सालों के ब्रेक के बाद वो 2005 में ‘फिर मेरी आशिकी’ के साथ लौटे, लेकिन नहीं चल पाए और फिर हमेशा के लिए पर्दे से गायब हो गए।
एक और नाम है- सुमित सहगल जो एक समय लगभग हर तीसरी फिल्म में हुआ करते थे, 90 के दशक के सभी बड़े स्टार के साथ उन्होंने काम किया था. संजय दत्त के साथ ‘ईमानदार’, सनी देओल के साथ ‘गुनाह’, विनोद खन्ना, गोविंदा के साथ ‘महासंग्राम’ जैसी तमाम फिल्मों में वो नजर आए। उन्होंने सायरा बानो की भतीजी शाहीन से शादी की। जिनकी एक बेटी हैं-सायशा जो तमिल फिल्मों में एक्ट्रेस हैं। 2003 में उनकी शादी तब्बू की बहन फराह से हुई, जो बिंदु दारा सिंह से तलाक ले चुकी थीं. फिलहाल सुमित की एक प्रोडक्शन कंपनी सुमित आर्ट्स के नाम से है, जो साउथ की फिल्मों को हिंदी में डब करने का काम करती है। फ़िल्मी पर्दा उनके लिए बेगाना है।
मुझे विश्वास है कि चप्पा चप्पा चरखा चले का दाढ़ी वाला मासूम सा चेहरा सभी को याद होगा। जी हाँ बात हो रही है अलीगढ़ के रहने वाले चंद्रचूड़ सिंह कीजिनकी किस्मत चमकी गुलजार की फिल्म ‘माचिस’ से, तब पूरा इंडिया चप्पा चप्पा चरखा चले गाना गाने लगा था। एक दौर में उन्होंने करण जौहर के ‘कुछ कुछ होता है’ में शाहरुख के साथ उस रोल के लिए मना कर दिया था, जो बाद में सलमान ने किया। उन्होंने संजय दत्त के साथ ‘दाग द फायर’, शाहरुख ऐश्वर्या के साथ ‘जोश’, सैफ प्रीति के साथ ‘क्या कहना’, अजय देवगन के साथ ‘दिल क्या करे’ जैसी तमाम बड़ी फिल्मों में काम किया, लेकिन गोवा में स्कीइंग के दौरान हुए एक एक्सीडेंट ने उनके 8 साल खराब कर दिए।और धीरे धीरे रुपहला पर्दा इस अदाकार को भूलने लगा।
नब्बे के दशक में अगर किसी लड़की के पीछे पूरा भारत दीवाना था, तो वो थीं अनु अग्रवाल, यानि ‘आशिकी’ गर्ल। फिर एक और चर्चित फिल्म आई ‘खलनायिका’. लेकिन 1996 में ‘रिटर्न ऑफ ज्वैलथीफ’ के बाद वह अचानक गायब हो गईं। सालों बाद पता चला कि उनका एक बड़ा एक्सीडेंट 1999 में हुआ था। 29 दिन कोमा में रहने के बाद वो अपना पिछला काफी कुछ भूल गई थीं। सुना है आजकल बैंगलोर में रहती हैं, उन्होंने शादी भी नहीं की है, योगा आदि करती रहती हैं।रुपहले पर्दे से फिलहाल काफी दूर हैं।
एक और नाम याद आता है रागेश्वरी का। इनको आम लोग तब जानें जब वो पहलाज निहलानी की फिल्म ‘आंखें’ में नजर आई थीं. रागेश्वरी खूबसूरत थीं, लेकिन बहुत जल्द गायब हो गईं. 2000 में उनके साथ भी चंद्रचूड़ की तरह ही एक हादसा हुआ सुनने में आया कि उनको पैरालिसिस की समस्या हो गई। चेहरे के बाएं हिस्से में दिक्कत हुई, जिसकी वजह से आवाज भी बिगड़ गई। इससे निकलने में उन्हें सालों लग गए. 2003 में अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘मुंबई से आया मेरा दोस्त’ में एक रिपोर्टर के रोल में वो नजर आईं और 2011 में आए ‘बिग बॉस’ में भी वो दिखाई दीं। उन्होंने लंदन के एक वकील सुधांशु स्वरूप से शादी कर ली और लंदन में ही रहने लगीं।
एक और अदाकारा का जिक्र करना जरुरी है। जब फरहीन ने ‘जान तेरे नाम’ में रोनित रॉय के साथ 1992 में डेब्यू किया था, तो उनके लुक्स के चलते लोग उन्हें दूसरी माधुरी दीक्षित कहने लगे थे। आलम ये हुआ कि उन्हें फौरन रजनीकांत की मूवी ‘कलिंगन’ ऑफर हो गई और रजनीकांत की हीरोइन बनने के चलते उन्होंने उस वक्त शाहरुख के अपोजिट मिल रही ‘बाजीगर’ तक को ठुकरा दिया। फिर उनको मूवी मिली अक्षय कुमार के अपोजिट ‘नजर के सामने’, हर कोई माधुरी दीक्षित से उनकी टक्कर करवा रहा था। उन्हें बॉलीवुड में फरहीन तो साउथ में बिंदिया के नाम से जाना जानें लगा था, लेकिन आज वही एक्ट्रेस दिल्ली में मशहूर क्रिकेटर मनोज प्रभाकर के साथ मिलकर बड़ा हर्बल बिजनेस चला रही हैं, बल्कि उनका परिवार भी संभाल रही हैं। मनोज ने पहली बीवी को तलाक दे दिया और फरहीन से शादी कर ली थी जिनसे उनके 2 बच्चे हैं।
मैंने प्यार किया कि मासूम सि आवाज वाली भाग्यश्री सांगली की राजकुमारी थीं, उनके पिता वहाँ के राजा थे। उन्होंने अपना अभिनय का सफ़र ‘कच्ची धूप’ सीरियल से शुरू किया। सलमान के साथ ‘मैंने प्यार किया’ ने उन्हें चांद पर पहुंचा दिया लेकिन इस फिल्म के फौरन बाद उन्होंने शादी कर ली। हर कोई उन्हें अपनी मूवी में लेने के लिए दरवाजे पर खड़ा था, लेकिन शर्त लगा दी कि मूवी करूंगी तो अपने पति हिमालय दासानी के साथ, और कोई हीरो नहीं चलेगा। कुछ फिल्मों में दोनों साथ नजर भी आए, लेकिन वो सभी फिल्में फ्लॉप हुई। बाद में इंडस्ट्री ने उन्हें अपने स्वाभाव के मुताबिक भुला दिया। इसके बाद उन्होंने मराठी, बंगाली, भोजपुरी फिल्मों में काम किया। टीवी में कभी ‘सीआईडी’ शो में वो नजर आईं, कभी ‘झलक दिखला जा’ 3 के प्रतियोगी के तौर पर वो दिखाई दीं।लेकिन फ़िल्मी पर्दे से उनकी बेवफाई बदस्तूर जारी है।
याद किया जाए तो ऐसे सैकड़ों नाम सामने आएंगे, जिन्हें दर्शकों ने पहले तो सिर पर बैठाया, पर फिर ऐसा उतार फैंका कि पलटकर देखा भी नहीं! किम शर्मा भी ऐसे ही चर्चित नामों में से एक थी। किम ने ‘डर’ और ‘मोहब्बतें’ जैसी हिट फ़िल्में दी! आज यह एक्ट्रेस कहाँ है, किसी को पता नहीं! पिछले दशक में ऐसा सबसे चर्चित नाम रहा ग्रेसी सिंह! आमिर खान के साथ ‘लगान’ से धमाकेदार इंट्री करने वाली ग्रेसी उसके बाद से ही लुप्त हो गई! वे ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में भी थीं! यह फिल्म तो जरुर हिट हुई, लेकिन ग्रेसी की कोई चर्चा नहीं हुई। वे ‘अरमान और मुस्कान’ में भी नजर जरूर आईं, पर ये फिल्में ही बेअसर रही। सलमान खान के साथ ‘सनम बेवफा’ में काम करने वाली चांदनी भी लुप्त होने वाले नामों में से एक है। उनके खाते में ‘सनम बेवफा’ पहली और आखिरी फिल्म साबित हुई। सलमान के ही साथ स्नेहा उलाल का भी ‘लकी’ में उदय हुआ था। उसके चेहरे पर ऐश्वर्या की झलक देखी गई थी! बाद में हॉरर फिल्म ‘क्लिक’ में भी उन्होंने काम किया। लेकिन, स्नेहा अपने करियर को आगे नहीं बढ़ा पाई!
महेश भट्ट की बेटी पूजा भट्ट ने ‘डैडी’ से अपनी शुरुआत की। पूजा ‘दिल है कि मानता नहीं’ में आमिर खान के साथ नज़र आई! इसके बाद संजय दत्त के साथ ‘सड़क’ में उनकी अदाकारी की तारीफ हुई। लेकिन, वे निर्देशक बन गईं और ऐक्टिंग छोड़ दी। प्रसिद्द फिल्मकार शेखर कपूर की पत्नी सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने भी शुरुवाती लोकप्रियता के बाद पहचान खो दी। टीवी की दुनिया से आईं सुचित्रा के खाते में भी बहुत ज्यादा फिल्में नहीं हैं। शिल्पा शेट्टी की बहन शमिता शेट्टी भी अपनी बहन की तरह बॉलीवुड पर छा जाना चाहती थीं। लेकिन, शमिता का जादू नहीं चला! ऐसा ही कुछ काजोल की बहन तनीषा मुखर्जी के साथ हुआ! ममता कुलकर्णी ने क्रांतिवीर, करन अर्जुन और सबसे बड़ा खिलाड़ी जैसी हिट फिल्में दीं। लेकिन, बाद में वे विवादों में आ गई। आयशा जुल्का का नाम भी दर्शक भूले नहीं है। खिलाड़ी, जो जीता वहीं सिकंदर जैसी सुपरहिट फिल्मों में उन्होंने काम किया लेकिन वे अपने करियर को सही दिशा देने में नाकाम रहीं। दीपा शाही ने फिल्म ‘हम’ में भाभी की भूमिका निभाई। इसके बाद फिल्म ‘माया मेमसाहब’ में शाहरुख खान के साथ बोल्ड सीन देकर सबको चौंका दिया था, आज लोग उनका नाम तक भूल चुके हैं। अमिताभ के साथ ‘हम’ के लोकप्रिय गाने जुम्मा चुम्मा दे दे पर थिरकने वाली किमी काटकर भी इस फिल्म की सफलता को भुनाने में असफल रही। टार्जन फिल्म के बोल्ड सीन दर्शको के दिलो दिमाग पर छाए हुए थे। फिमली पर्दे ने उस किमी को भी भुला दिया।
मणिरत्नम की फिल्म ‘रोजा’ और ‘बांबे’ जैसी फिल्म में काम कर चुके अभिनेता अरविंद स्वामी तो फिल्मों से ही दूर हो गए। ये सूची पूरी नहीं हुई, जितने शुक्रवार आते हैं, एक नया नाम जुड़ता जाता है। फरदीन खान का करियर नशे भी भेंट चढ़ गया। ड्रग्स और नशे के चलते नब्बे के दशक की अभिनेत्री मनीषा कोइराला का फ़िल्मी कैरियर भी चोपट हुआ लेकिन कैंसर के बाद उन्होंने नशे से दूरी बनाकर जोरदार वापसी भी की।
तकरीबन ढाई दशक तक बॉलीवुड पर राज करने के बाद…श्रीदेवी ((चांदनी)) की चमक भी फिकी पड़ने लगी थी …1997 में फिल्म जुदाई के बाद श्री देवी ने कुछ सालों तक बॉलीवुड से दूरी बना ली। इसके बाद उन्होने साल 2004 में छोटे पर्दे के शो मालिनी अय्यर के जरिए दस्तक दी। बॉलीवुड की दूसरी इनिंग साल 2012 में श्रीदेवी ने फिल्म इंग्लिश विंग्लिश के जरिए शुरु की। एक माँ की भूमिका में श्री देवी ने खूब सुर्खिया बटोरी। पांच साल बाद 2017 में रिलीज हई मॉम में भी श्रीदेवी के रोल को काफी सराहा गया…
पुराने ज़माने के अभिनेता व् अभिनेत्रियों के फिली करियर की बात करें तो जितेंद्र का नाम याद आता है जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘नवरंग’ से की, जिसमें उन्हें छोटी सी भूमिका निभाई। लगभग पांच वर्ष तक जीतेंद्र फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के रूप में काम पाने संघर्षरत रहे। वर्ष 1964 में उन्हें वी शांताराम की फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद जितेन्द्र अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1967 में उनकी एक और सुपरहिट फिल्म ‘फर्ज’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में जितेंद्र ने डांसिग स्टार की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उन पर फिल्माया गीत ‘मस्त बहारो का मैं आशिक’ श्रोताओं और दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म के बाद जितेन्द्र को जंपिग जैक कहा जाने लगा। नब्बे के दशक में अभिनय मे एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए उन्होंने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। वर्ष 2000 के दशक में फिल्मों में अच्छी भूमिकाएं नहीं मिलने पर उन्होंने फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया। इस दौरान वह अपनी पुत्री एकता कपूर को छोटे परदे पर निर्मात्री के रूप स्थापित कराने में उनके मार्गदर्शक बने रहे। जितेंद्र ने चार दशक लंबे सिने करियर में 250 से भी अधिक फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। वह इन दिनों अपनी पुत्री एकता कपूर को फिल्म निर्माण में सहयोग कर रहे हैं।
एक ना है जिन्हें 60 और 70 के दशक की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों और नर्तकियों में से एक के रूप में याद किया जाता है। दर्शक आज भी उनके लटके-झटके भूले नहीं है। सामान्य सी शक्ल-सूरत वाली चपटी नाक की इस अभिनेत्री ने 1971 में खिलौना में अपने किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। कौन जानता था कि छोटी सहायक भूमिकाओं के साथ शुरुआत करने वाली मुमताज़ को अपने समय के सभी शीर्ष अभिनेताओं के साथ मुख्य भूमिकाओं में काम करने का असवर कभी मिलेगा लेकिन अपनी प्रतिभा से उन्होंने ये सब सच साबित कर दिखाया।
मुमताज़ के फ़िल्मी करियर की बात करें तो मुमताज़ ने 1958 में सोने की चिड़िया से एक बाल अभिनेत्री के रूप में काम शुरू किया। मुमताज़ की मां नाज़ और आंटी निलोफर दोनों ही एक्टिंग की दुनिया में सक्रिय थीं, लेकिंन वे महज जूनियर आर्टिस्ट के ही रूप में काम किया करतीं रही। साठ के दशक में मुमताज़ ने फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने शुरू कर दिए थे। किशोरी के रूप में उन्होंने 1960 के दशक की शुरुआत में वल्लाह क्या बात है स्त्री और सेहरा में अतिरिक्त अभिनेत्री के रूप में काम किया। वयस्क के रूप में, ए-ग्रेड फिल्मों में उन्हें पहली भूमिका 1963 की गहरा दाग़ में मिली। इसमें उन्होंने नायक की बहन की भूमिका निभाई थी। शुरुआती दौर में “मुझे जीने दो “ जैसी सफल फिल्मों में उन्हें छोटी भूमिकाएँ मिलीं। लेकिन इन भूमिकाओं के बल पर उन्होंने अपनी अदायगी से बड़े बैनर की फ़िल्में बनाने वाले निर्माता-निर्देशकों को आकर्षित किया। इसी अभिनय क्षमता के बल पर बाद में, उन्होंने 16 एक्शन फिल्मों में मुख्य मुख्य नायिका की भूमिका निभाई, जिसमें फ़ौलाद वीर भीमसेन, टार्ज़न कम्स टू देल्ही, सिकंदर-ए-आज़म, रूस्तम-ए-हिंद, राका, और डाकू मंगल सिंह, शामिल हैं। इन सब में पहलवान दारा सिंह उनके साथ मुख्य भूमिका में थे और वह स्टंट-फिल्म नायिका के रूप में मानी जाने लगी। कहा जा सकता है कि उनकी किस्मत तब बदली जब दारा सिंह जैसे स्टार बॉलीवुड का हिस्सा बने। दारा सिंह जैसे बुलंद किरदार के साथ काम करने से उस दौर की एक्ट्रेस बचतीं थीं। लेकन मुमताज़ ने एक के बाद एक सोलह फिल्में दारा सिंह के साथ कीं। इन सोलह फिल्मों में दस फिल्में जबरदस्त हिट साबित हुईं थीं। यहां से मुमताज की कामयाबी का सफर शुरू हो गया था।
1969 में आई राज खोसला की ब्लॉकबस्टर दो रास्ते ने मुमताज़ को पूर्ण फिल्मी सितारा बना दिया। इसमें नायक के रूप में राजेश खन्ना ने अभिनय किया था। हालाँकि मुमताज़ की फिल्म में छोटी भूमिका थी, फिर भी निर्देशक राज खोसला ने उनके साथ चार गाने फिल्माए। 1969 में, राजेश खन्ना के साथ उनकी फिल्में दो रास्ते और बंधन, वर्ष की शीर्ष कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। उन्होंने राजेन्द्र कुमार की ताँगेवाला में प्रमुख नायिका की भूमिका निभाई। शशि कपूर, जिन्होंने पहले सच्चा झूठा (1970) में उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया था, अब वह चाहते थे कि वह चोर मचाये शोर (1974) में उनकी नायिका बनें। उन्होंने लोफर और झील के उस पार (1973) जैसी फिल्मों में प्रमुख नायिका के रूप में धर्मेन्द्र के साथ काम किया। मुमताज ने फ़िरोज़ ख़ान के साथ अक्सर काम किया जिसमें हिट फिल्में मेला (1971), अपराध (1972) और नागिन शामिल हैं। राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी कुल 10 फिल्मों में सबसे सफल रही।
मुमताज़ ने अपने परिवार पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए फिल्म आईना (1977) के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। १३ साल बाद 1990 में आँधियां से फिर वापसी की थी। हालाकि यह फिल्म ज्यादा दर्शक नहीं जुटा पायी। अपने दौर में टॉप पर रहीं मुमताज़ ने ‘आंधियां’ फिल्म से दूसरी पारी खेलनी जरुर चाही लेकिन इस फिल्म के फ्लॉप हो जाने के बाद उन्होंने इंडस्ट्री को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
ये रुपहला पर्दा ऐसा ही है जनाब। यहाँ अपने जीवन के बेशकीमती पल देने वालो को यूँ ही भुला दिया जाता है। जो कल दिलों पर राज करता था वह आज नहीं है। और जो आज दिलों पर राज कर रहा है वह कल नहीं होगा। कल और आएंगे नगमो की खिलती कलियों के साथ।