जैसे-जैसे दुनिया तेजी से डिजिटल होती जा रही है, जेनरेशन जेड (जिनका जन्म लगभग 1996 और 2010 के बीच हुआ है) खुद को एक अद्वितीय वित्तीय परिदृश्य में पाता है, जो “ईएमआई संस्कृति” के उदय से महत्वपूर्ण रूप से आकार लेता है। हाल के वर्षों में, प्रौद्योगिकी में प्रगति और फिनटेक कंपनियों के प्रसार के कारण उपभोक्ता ऋण की उपलब्धता बढ़ी है। जेन ज़ेड, जो अपनी तकनीक-समझदारी और ऑनलाइन लेनदेन में आराम की विशेषता है, ने इन पेशकशों को जल्दी से अपना लिया है। ईएमआई संस्कृति में फंसी ‘जेन जेड’ पहुंच की यह आसानी आकर्षक हो सकती है। एक उंगली के स्वाइप से, वह जब चाहे तब वह खरीद सकता है जो वह चाहता है।
आज का युवा डिजिटल युग में जी रहा है, जहां हर प्रकार की जानकारी, मनोरंजन, और सुविधाएं हाथों में स्मार्टफोन के ज़रिए उपलब्ध हैं। इस उपभोक्तावाद की संस्कृति में, खर्च करने को एक सामान्य और जरूरी पहलू माना जा रहा है। इसका असर यह है कि युवा पीढ़ी तात्कालिक सुखों में निवेश करना पसंद कर रही है, जैसे कि महंगे गैजेट्स, ट्रेवल एक्सपीरियंसेस, और लग्जरी ब्रांड्स। जिससे बचत की अहमियत कम होती जा रही है। इसके अलावा, युवा पीढ़ी के खर्च की प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं। वे अनुभवों में निवेश करना चाहते हैं, जैसे कि घूमने-फिरने और जीवन के क्षणों का आनंद उठाने में।
फियर ऑफ मिसिंग आउट (फोमो) भी एक बड़ा कारण है, जिसके चलते युवा अब भविष्य की बजाय वर्तमान को अधिक महत्व देने लगे हैं। सोशल मीडिया पर अपने साथी या सहपाठियों की जीवनशैली को देखकर युवा स्वयं पर दबाव महसूस करते हैं कि उन्हें भी उसी प्रकार का जीवन जीना चाहिए। यह प्रवृत्ति उन्हें तुरंत खर्च करने की ओर प्रेरित करती है, जबकि बचत की प्रवृत्ति कम होती जा रही है।
आज की तेज रफ्तार दुनिया में, आर्थिक दृष्टिकोण तेजी से बदल रहा है। पुराने समय से ही भारतीय समाज में बचत का महत्व रहा है। हमारे दादा-दादी से लेकर हमारे माता-पिता तक, सभी ने हमें सिखाया है कि आर्थिक सुरक्षा के लिए बचत करना जरूरी है। बचत एक ऐसा मूल्य रहा है जिसने हमें वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा दी है। लेकिन आज, हम जिस तरह की उपभोक्तावादी संस्कृति में जी रहे हैं, वह बचत के इस मूल्य को धीरे-धीरे कम कर रही है।
विश्व बचत दिवस हर साल 31 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। भारत में यह दिन 30 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत दुनिया भर के लोगों में अपने पैसे को गद्दे के नीचे या घर में रखने के बजाय बैंक में जमा करने के विचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के इरादे से की गई थी। इसकी शुरुआत 31 अक्टूबर 1924 को विश्व बचत बैंक सोसायटी द्वारा की गई थी। इसके स्थापना का उद्देश्य लोगों को प्रथम विश्व युद्ध के बाद नष्ट हुए धन को बचाने के लिए प्रोत्साहित करना था। इस दिन की शुरुआत एक इतालवी प्रोफेसर फिलिपो रविज़ा ने की थी। उन्होंने इस दिन को “अंतर्राष्ट्रीय बचत दिवस” नाम दिया। हालांकि, प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापना ने अपना महत्व खो दिया। फिर बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस दिन को महत्व मिला।
श्री रविज्जा द्वारा इस दिवस को घोषित करने का उद्देश्य परिवार समूहों के बीच अपने भविष्य, अपने बच्चों, चिकित्सा आपात स्थितियों और अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए बचत करने के प्रति जागरूकता लाना था और लोगों को नियमित बचत करने के प्रति जागरूक करना और वित्तीय योजनाओं के महत्व को समझाना है। बढ़ते उपभोक्तावाद और जीवनशैली में बदलाव के चलते बचत की आदत धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
आज के दौर में शहरी युवा पीढ़ी के आर्थिक व्यवहार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। यह पीढ़ी, जिसे अक्सर ‘मिलेनियल्स’ और ‘जेन जेड’ के नाम से भी जाना जाता है, क्रेडिट कार्ड के माध्यम से एक नई वित्तीय जीवनशैली को अपनाने लगी है।
वर्तमान में, भारत में क्रेडिट कार्ड का चलन तेजी से बढ़ा है। खासकर शहरी युवाओं में यह एक सामान्य वित्तीय साधन बन गया है, जिससे वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं। विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए जा रहे कई आकर्षक ऑफर, कैशबैक, और रिवॉर्ड पॉइंट्स के चलते युवाओं में क्रेडिट कार्ड का आकर्षण काफी बढ़ गया है।
आज की पीढ़ी जल्दी से आर्थिक स्वतंत्रता चाहती है और खुद के फैसले लेने के लिए सक्षम बनना चाहती है। वह परिवार पर निर्भर नहीं रहना चाहती। इस वजह से वे जल्दी नौकरी करते हैं और अपने खर्चों को संभालने के लिए ईएमआई का सहारा लेते हैं, चाहे वह कार हो, घर हो, या फिर अन्य बड़े खर्च।
आज शिक्षा का स्तर बढ़ गया है और इसके साथ ही उच्च शिक्षा की लागत भी। विदेश में पढ़ाई करने का सपना देखने वाले कई युवा शिक्षा ऋण लेते हैं और इसकी ईएमआई चुकाते हैं। ईएमआई पर निर्भरता के कारण कई युवाओं के लिए वित्तीय स्थिरता एक चुनौती बन गई है।
ईएमआई का लाभ यह होता है कि कोई भी व्यक्ति एक बड़ी राशि के भुगतान के बजाय मासिक किस्तों में भुगतान कर सकता है। लेकिन आकर्षक योजनाओं और आसान ऋण प्रक्रिया के चलते मध्यम वर्ग अक्सर अपने साधनों से अधिक खर्च करने की दिशा में बढ़ जाता है। आसान ऋण मिलने के कारण लोग घर, कार इत्यादि को ईएमआई पर खरीद लेते हैं, जिससे उनकी मासिक आय का एक बड़ा हिस्सा किस्तों में चला जाता है।
क्रेडिट कार्ड युवाओं को तत्काल ख़र्च करने की आज़ादी प्रदान करते हैं। इसके ज़रिए वे अक्सर महंगे स्मार्टफोन, गैजेट्स, डिज़ाइनर कपड़े, अवकाश यात्राएं और अन्य कई सुविधाओं का लाभ उठा पाते हैं। उन्हें एक प्रकार से अपने सपनों को जीने का एक सरल और सुलभ साधन मिल जाता है।
ब्रांडेड सामान और ऑनलाइन शॉपिंग के प्रति दीवानगी भी इस पीढ़ी में आम हो गई है। युवा अपनी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिए महंगे ब्रांड्स का सहारा लेते हैं, और क्रेडिट कार्ड से तुरंत खरीदारी करना उनके लिए आसान हो गया है। सोशल मीडिया पर अपनी लाइफस्टाइल को प्रदर्शित करने के इस दौर में, दिखावे की यह मानसिकता और अधिक बढ़ जाती है।
ईएमआई का भुगतान करने के लिए नियमित आमदनी की जरूरत होती है। इस प्रकार, कई बार बिना सोचे-समझे ऋण लेना भविष्य में आर्थिक संकट का कारण बन सकता है। कई बार युवा लोग बिना किसी वित्तीय योजना के ईएमआई लेने के फैसले कर लेते हैं, जिसके कारण वे कर्ज के बोझ तले दब सकते हैं। बचत की आदत डालने के बजाय ईएमआई पर निर्भरता उन्हें भविष्य में वित्तीय अस्थिरता की ओर ले जाती है।
आज की युवा पीढ़ी के लिए ईएमआई एक वित्तीय साधन है, लेकिन जरूरत है कि इसे सही तरीके से समझा और इस्तेमाल किया जाए। युवाओं को आर्थिक शिक्षा और वित्तीय प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। EMI के जरिए इच्छाओं की पूर्ति करना गलत नहीं है, परंतु वित्तीय स्थिति का आकलन करना और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखना जरूरी है। लोगों को अपनी आय के एक हिस्से को आपातकालीन निधि में सुरक्षित रखना चाहिए ताकि कोई अप्रत्याशित खर्च आने पर ईएमआई चुकाने में बाधा न आए।
हालांकि क्रेडिट कार्ड का उपयोग सुविधाजनक है, परंतु इसके नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देना भी आवश्यक है। अत्यधिक क्रेडिट कार्ड उपयोग करने वाले युवा अक्सर कर्ज में डूब जाते हैं, जो कि उनके वित्तीय भविष्य पर गहरा असर डालता है। मासिक बिलों के ब्याज दरों का चक्र उन्हें और अधिक कर्ज में डाल देता है। शहरी युवा पीढ़ी का क्रेडिट कार्ड पर बढ़ता हुआ निर्भरता एक दोधारी तलवार की तरह है। जहां यह उन्हें सुविधा और खर्च की आज़ादी देता है, वहीं यह उनके आर्थिक भविष्य को भी जोखिम में डालता है।
इस आर्थिक दुष्चक्र का सबसे बड़ा प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। बढ़ती ईएमआई की अदायगी, और उससे जुड़े तनाव से मध्यम वर्ग के लोगों में मानसिक विकार जैसे तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ते हैं। इसके कारण कई बार पारिवारिक रिश्तों में भी तनाव बढ़ता है। ईएमआई की योजना एक सुविधा हो सकती है, परंतु इसका उपयोग सोच-समझकर किया जाना चाहिए। बिना सही वित्तीय योजना के, यह सुविधा एक आर्थिक दुष्चक्र में बदल सकती है, जिससे बाहर निकलना कठिन हो जाता है।
मितव्ययी व्यक्ति पर समाज का नजरिया अक्सर उसे “कंजूस” कहकर आंकने की होती है। हालांकि मितव्ययी व्यक्ति आर्थिक रूप से समझदार और सोच-समझकर खर्च करने वाला होता है, लेकिन समाज में कई बार उसे कंजूस या कृपण समझा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समाज में अधिकांश लोग उन व्यक्तियों को अधिक पसंद करते हैं जो उदारतापूर्वक खर्च करते हैं, खासकर सामाजिक आयोजनों, शादी-ब्याह और अन्य उत्सवों में।
मितव्ययी व्यक्ति अपनी जरूरतों को प्राथमिकता देता है और अपने खर्चे को सोच-समझकर संचालित करता है। वह किसी भी वस्तु या सेवा में केवल इसलिए खर्च नहीं करता कि इससे उसकी छवि अच्छी बनेगी। उसकी प्राथमिकता होती है कि वह फिजूलखर्ची न करे और भविष्य के लिए कुछ बचत करे। लेकिन समाज में कई बार लोग इस समझदारी को समझ नहीं पाते और उसे “कंजूस” की श्रेणी में रख देते हैं।
दरअसल, मितव्ययिता और कंजूसी में अंतर होता है। मितव्ययिता का मतलब है कि व्यक्ति अपनी आय के अनुसार खर्च करता है, बेवजह खर्च से बचता है और संसाधनों का सदुपयोग करता है। वहीं कंजूसी का अर्थ है कि व्यक्ति आवश्यक खर्चों में भी कटौती करता है और अपने साधनों का उपयोग भी नहीं करना चाहता। मितव्ययी व्यक्ति सीमित संसाधनों में भी जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होता है, जबकि कंजूस व्यक्ति अक्सर आवश्यकता के समय भी अपने साधनों का उपयोग करने से बचता है।
समाज में इस गलतफहमी का एक कारण यह भी है कि मितव्ययी व्यक्ति दूसरों पर खर्च करने से पहले सोचता है, जिससे लोगों को लगता है कि वह खर्च करने से बचता है। इसके अलावा, आज के उपभोक्तावादी समाज में जहां अधिक खर्च और दिखावे को महत्व दिया जाता है, वहां मितव्ययिता को पुरानी सोच मान लिया गया है।
वर्तमान समय में, सरकार अक्सर नागरिकों को व्यक्तिगत बचत के महत्व पर बल देती है। बजट भाषणों, सरकारी अभियानों और वित्तीय योजनाओं के माध्यम से लोगों को भविष्य के लिए बचत करने की सलाह दी जाती है। लेकिन जब हम सरकार की आर्थिक नीतियों का गहन विश्लेषण करते हैं, तो एक विरोधाभास स्पष्ट होता है। ऐसा लगता है कि सरकारी नीतियाँ एक ओर बचत के महत्व को बताती हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी नीतियाँ भी लागू करती हैं जो उपभोक्ताओं को खर्च करने की ओर प्रेरित करती हैं।
किसी भी देश की जीडीपी में मांग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सरकार जब अर्थव्यवस्था को बढ़ाने की बात करती है, तो इसमें नागरिकों के खर्च को मुख्य घटक माना जाता है। इसलिए, खर्च को बढ़ावा देने के लिए टैक्स में कटौती जैसे कदम उठाए जाते हैं। सरकार की बचत की सलाह और खर्च प्रोत्साहन के बीच का यह विरोधाभास न केवल आर्थिक नीतियों की जटिलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देश के विकास और व्यक्तिगत वित्तीय सुरक्षा में संतुलन बनाना आवश्यक है। जहाँ एक ओर सरकार आर्थिक विकास और जीडीपी में वृद्धि के लिए खर्च को बढ़ावा देती है, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत बचत भी भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
मौजूदा समय में इन्फ्लेशन दर लगातार बढ़ रही है, जिससे बचत की अहमियत कम होती जा रही है। वर्तमान पीढ़ी निवेश के प्रति एक खुली सोच रखती है। वे पारंपरिक बचत जैसे फ़िक्स्ड डिपॉजिट की बजाय म्यूचुअल फंड्स, स्टॉक्स, क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करना पसंद करते हैं। हालांकि, ये निवेश विकल्प उच्च जोखिम वाले हैं, लेकिन उनकी संभावित रिटर्न के कारण आकर्षक भी हैं। इसका मतलब यह है कि युवा पीढ़ी भविष्य में होने वाले लाभ के लिए वर्तमान की स्थिरता को दांव पर लगाने के लिए तैयार है।
अगर यह उपभोक्तावादी और तात्कालिक सुखों की प्रवृत्ति इसी प्रकार बनी रही, तो हो सकता है कि भविष्य की पीढ़ियां आर्थिक सुरक्षा के बजाय अपनी वित्तीय स्थिति के लिए संघर्ष करेंगी। हमारे पूर्वजों ने जो आर्थिक स्थिरता का रास्ता अपनाया था, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए दुर्लभ हो सकता है।
हम शायद सचमुच अंतिम पीढ़ी हैं जो आर्थिक बचत अथवा स्थाई निवेश के बारे में सोचते हैं। तेजी से बदलते समय में, यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन चुका है कि क्या आर्थिक बचत और स्थिरता के मूल्य को जीवित रखना संभव होगा। हालांकि, समय के साथ बदलाव स्वाभाविक है, लेकिन यह जरूरी है कि हम आर्थिक संतुलन बनाए रखें ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्थिर और सुरक्षित भविष्य मिल सके।