अम्बे मात का आगमन, मन में हास उलास।
नवरातों के रंग में, घर में हुआ उजास।।
उत्सव है परदेश में, सवरा सबका वेश।
रंग-बिरंगे वस्त्र में, सुंदर छोटा देश।।
भेदभाव को छोड़ कर, थिरके सब मिल साथ।
जयकारा सब बोलते, सर पे माँ का हाथ।।
ताली, चुटकी, मंजरी, घट पे दीप जलाय।
सुख-समृद्धि बनी रहे, गरबा घूमे आय।।
परिधानों के रंग में, डूब रहे नर-नार।
राधा मोहन बन यहाँ, प्रीत रास शृंगार।।
ओ हालो की गूंज से, हुलस भरे मन मास।
हाथ डांडिया ढोल पे, थिरके गरबा रास।।
आहुति देते हवन में, कुविचारों की आज।
भंडारे की भीड़ में, सब मिल करते भोज।।
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