दिनांक – १४/०९/२४
स्थान – द हाउस ऑफ मकेबा
आयोजन – ‘ हिंदी की सुगंध: भाषा का उत्सव ‘
आयोजक – अहमदाबाद बुक क्लब
मुझे हो प्रेम हिंदी से पढूं हिंदी, लिखूं हिंदी, चलन हिंदी चलूं, हिंदी पहनना ओढ़ना खाना, तथा रहे मेरे भवन में रोशनी हिंदी चिरागों की, स्वदेशी ही रहे गाना बजाना राग का गाना ‘
रामप्रसाद ‘बिस्मिल ‘ की इन पंक्तियों के साथ एक ऐसे समारोह की शुरुआत हुई जिसकी सुगंध अंतर्मन में समाहित हो गई।
द हाउस ऑफ मकेबा में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में अहमदाबाद बुक क्लब द्वारा आयोजित उत्सव का शुभारंभ अहमदाबाद बुक क्लब की सेक्रेटरी सुश्री स्वाति भारद्वाज जी के स्वागत वक्तव्य से हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में डा. प्रणव भारती जी, सुश्री मंजू महिमा भटनागर जी व श्री रविंद्र मरडिया जी की गरिमामयी उपस्थिति कार्यक्रम को भव्यता प्रदान कर रहे थे।
तत्पश्चात सुश्री ममता जी ने मां वीणापाणि के आह्वान के साथ मंच संचालन की बागडोर संभाली।
सर्वप्रथम आ. प्रणव भारती जी ने हिंदी भाषा के बारे में व्याख्यान देते हुए हिंदी के गौरवमयी इतिहास के बारे में अवगत कराया।
इसके बाद चंद्र प्रकाश गुप्त जी, मिहिर जोशी जी, अभिषेक शुक्ला जी, तपन नरेंद्र जी, रुचि शर्मा जी, मनस्विनी जी, चारु दत्त प्रयाग जी, चंद्रप्रभा जी, मनीषा शर्मा जी, रेखा कृष्णन जी, शरद कुमार पाटिल जी, आ. मंजू भटनागर जी, स्वाति भारद्वाज जी, सचित अग्रवाल जी, लीना खेरिया जी, बृजेश दवे जी, आ. रवींद्र मरडिया जी, ममता जी, व अहमदाबाद बुक क्लब की अध्यक्ष सुश्री श्रद्धा जी ने अपनी अपनी अद्भुत प्रस्तुति दी। अहमदाबाद इंटरनेशनल लिटरेचर संस्था के संस्थापक उमाशंकर जी के अनोखे अंदाज में पढ़ी कविता का स्वागत तालियों से किया गया।
यह कार्यक्रम इसलिए भी विशेष था क्योंकि यह साहित्यिक शाम हमारे साहित्यिक पुरखों के नाम थी। यह उत्सव पुष्प उन नींव के पत्थरों को समर्पित था, जो साहित्य की अथाह विरासत छोड़ गए हैं। यह जश्न था हिंदी का , भाषा का, बोली का। यह जश्न था उस भाषा का जिसमे हमने मुस्कुराना सीखा, मां की लोरी सुनी, पिता के अनुभव को देखा, बलिदानों की गाथा बांची, एहसासों की छुअन को लिखा, प्रेम की पाती लिखी। यह शाम सजी थी उन कवियों के नाम जिनकी कविताओं में मिलती है आंचलिकता, अपना गांव, नीम का चौरा, पीपल का बिरवा, बरगद की जड़, मिट्टी की खुशबू, कमल के फूल से भरे तालाब और गांव के बीच चौपाल में भारत माता की जय घोष।
आज यहां कबीरा का न्योता था, दिनकर भी आए थे, मीरा ने धूनी लगाई थी, महादेई का अंतर्मन खुला था, प्रसाद भी लहराए थे, पंत की नाजुकी भी कुम्हलाई थी, नागार्जुन का धुआं उठा था, हरिवंश का हाला भी झूमा था।
अंत में अहमदाबाद बुक क्लब की प्रेसीडेंट सुश्री श्रद्धा जी ने धन्यवाद ज्ञापन द्वारा कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।