सावन की बयार में झूमे मनवा,
भीगे हर बूंद बूंद मोरा तनवा।
सुन री पपिहारी तु काहे कुहुकाये ,
सुनत नाही तोरी पुकार जनवा ।।
आंधी और बिजली की कड़क झड़ी मा देखो ,
देखत डरत रह जाए सनवा।
उड़त घटाके जैसी म्हारी केश कांति जब,
घिर घिर आए कारे कारे बदरवा।।
अंबुआ की डरिया पे झूले जो पड़न लागे,
लेहत हिलोरे गोरी कारे मनवा।
नन्ही नन्ही बूंदों ने जो छुआ धरती का आंचल,
धानी छाई चुनर सब खेतनवा ।।
तीज की सुहागन देखो पंचमी नागा की आई,
दूध आक भांग भोले पूजे भगतनवा।
सोलह श्रृंगार करे नव वधु बन घूमे ,
मेहंदी महावर से रिझाए साजनवा।।
सावन की बयार में झूमे मनवा।