अनंत अंबानी की शादी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है। भारतीय समाज में ‘विवाह’ को किसी उत्सव की तरह मनाए जाने की परंपरा का लंबा इतिहास रहा है। हम उस समाज का प्रतिनिधित्व भी करते हैं जहाँ अब से बस एक-दो दशक पूर्व ही विवाह के दस-बारह दिन पहले से सारा परिवार और निकटतम संबंधी इकट्ठे हुआ करते थे। पूरे हर्षोल्लास के साथ सभी रस्में निभाई जातीं थीं। हल्दी, मेहंदी, संगीत, भात और भी न जाने क्या-क्या! हर दिवस की अलग तैयारियाँ और अलग वस्त्र भी तय कर लिए जाते थे। व्यंजनों का तो कहना ही क्या! दूर-दूर तक उनकी सुगंध जाती थी।
चाहे कोई कितना ही मना करे लेकिन लेनदेन का भी अपना रिवाज़ था। तात्पर्य यह कि प्रत्येक विवाह में वर-वधू दोनों पक्ष के लोग अपनी सामर्थ्य से अधिक धन व्यय करते थे। अब इसे हम उनका प्रदर्शन मान लें या कि बच्चों के विवाह में सब कुछ लुटाकर/ दिल खोलकर खर्च कर देने की भावना लेकिन इसे असामान्य कभी नहीं माना गया। यहाँ मैं दहेज जैसी कुप्रथा की चर्चा नहीं कर रही बल्कि एक आम मध्यमवर्गीय परिवार और उनकी खुशियों को केंद्र में रखकर कह रही हूँ। यह भी सत्य है कि संयुक्त परिवारों के विघटन, महंगाई की मार और समय की मारामारी के चलते मध्यवर्ग ने भी अब इन आयोजनों को दो-तीन दिन तक समेट दिया है। लेकिन कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो शो-बाज़ी में कमी तो अब भी नहीं आई है।
जहाँ मध्यमवर्ग की बात आई, वहाँ सपनों की दुनिया का एक लंबा आसमान खुल जाता है। ये वे सपने हैं जिन्हें वह अपनी कड़ी मेहनत और लगन से पाने का हुनर भी रखता है और प्रायः पा भी लेता है। लेकिन इसने संतुष्ट होना उसने नहीं सीखा। इसकी महत्वाकांक्षाओं की कोई थाह नहीं और समय के साथ इसके स्वप्न भी और बड़े होते चले जाते हैं जिन्हें पूरा करने का संघर्ष ही इसके जीवन का उद्देश्य बन जाता है। कभी-कभी हताशा, निराशा से अवसाद उपजता है और वह कुंठा में घिरने लगता है। अब वह ईर्ष्यालु भी हो सकता है। स्वयं की बजाय दूसरे पर अधिक ध्यान देता है। वही बात कि ‘अपने घर की लाइट जाने का दुख तो है पर पड़ोसी की भी गई तो यही दुख हल्का हो जाता है।’
हमारी परेशानी यह है कि हम कुछ जल्दी ही अपने लिए सेंटीमेंटल और दूसरों के लिए जजमेंटल हो जाते हैं। हमें अपनी संवेदनाओं का तो खूब भान रहता है पर किसी और पर प्रतिक्रिया देने की होड में यही संवेदनाएं कहीं विलुप्त हो जाती हैं और हम दूसरे पक्ष को आहत करने से भी नहीं चूकते! अंबानी परिवार के यहाँ विवाह को लेकर लिखी गईं तमाम आपत्तिजनक पोस्ट्स भी इसी श्रेणी में आती हैं। भई, जैसे आप अपने यहाँ धूमधाम से शादी करते हैं, सभी मित्रों को बुलाते हैं, नाचगाना-संगीत होता है, वही तो यहाँ हो रहा! इसमें अश्लील क्या हो रहा? अब उनकी हैसियत के अनुसार उनके दोस्त हैं तो वे आमंत्रित भी किये जाएंगे और आएंगे भी। हम लोग लिफ़ाफ़े लेने-देने और चुकता करने का हिसाब रखते हैं तो उनके यहाँ उपस्थिति मायने रखती है। कल्पनातीत उपहार भी दिए जाते हैं।
स्वस्थ हास्य में कोई बात नहीं लेकिन यह क्या कि उनका वैभवशाली प्रदर्शन देखकर आपको अच्छा नहीं लग रहा। अरे! तो न देखें लेकिन अपमानित क्यों अनुभव कर रहे? यह तो हमारे लिए गौरव का विषय होना चाहिए कि हमारे देश के एक उद्योगपति के घर न केवल विश्वभर की हस्तियाँ एकत्रित हुई हैं बल्कि वह उनके सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहीं हैं।
हम यह क्यों स्मरण नहीं करते कि अंबानी परिवार के पास अपार धन-दौलत यूँ ही नहीं आ गई है इसके पीछे स्व. श्री धीरुभाई अंबानी जी के संघर्ष की एक लंबी कहानी है। हमारी नज़रों में पंद्रह हजार रुपये, एक मेज और तीन कुर्सियों से प्रारंभ हुए उस कड़े संघर्ष का सम्मान होना चाहिए, उस विरासत को संभालकर आगे बढ़ाने वाली पीढ़ी का भी मान होना चाहिए। यह भी देखना होगा कि इतनी ऊँचाई पर पहुँचने के बाद जहाँ प्रायः लोगों का घमंड आसमान छूने लगता है वहाँ अंबानी परिवार आज भी कैसे अपनी जड़ों को थामे हुए है। वे अपने संस्कार नहीं भूले। उनकी सभ्यता और व्यवहार से समझिए कि चोटी पर पहुंचकर ठहरने का सलीक़ा क्या होता है! कैसे अपने पूर्वजों की धरोहर को संरक्षित रखा जाता है। झुकना क्या होता है और सबको सम्मान कैसे दिया जाता है! कैसे सबकी मदद की जाती है! दान-पुण्य के लिए केवल धन ही नहीं, एक कोमल हृदय की भी दरकार होती है; इसे भी इस परिवार की विनम्रता और भाषा से समझना होगा।
हमें इस दबाव में आना ही क्यों कि अब सब लोग ऐसा ही दिखावा करेंगे या कि और कोई परेशानी बढ़ जाएगी! वे अपने हिस्से की समाज सेवा भी कर रहे और व्यापार में मेहनत भी, इसलिए मेवा भी खा रहे। हमें परिश्रम से किसने रोका है? क्षमा कीजिएगा लेकिन यदि हमारे पास भी इतनी ही धन-संपत्ति होती तो हम-आप भी सादगी पसंद होने का यह ढोंग नहीं रचते! राजनीति से ऊपर उठकर इस बात को समझेंगे तो संभवतः समझ भी आ जाए लेकिन व्यर्थ के हिसाब-क़िताब और कुंठा से तो उबरना ही होगा!
यह एक विवाहित जोड़े को मंगलकामनाएं देने का समय है। हमारे संस्कार भी यही कहते हैं। नव-विवाहित जोड़े की सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और श्रेष्ठ जीवन हेतु अशेष शुभकामनाएं।