जावेद सिद्दीक़ी को इस बार हुए 14वें जयपुर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल 2022 में ‘लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा गया। बता दें कि जावेद जी का जन्म 13 जनवरी 1942 को हुआ था। और वे एक प्रसिद्ध हिंदी और उर्दू पटकथा लेखक, संवाद लेखक और नाटककार हैं। जिन्होंने पचास से अधिक कहानी, फिल्मों की पटकथा और उनके लिए संवाद लिखे हैं।
जावेद सिद्दीकी ने अब तक के अपने करियर के दौरान, ‘सत्यजीत रे’ और ‘श्याम बेनेगल’ जैसे स्वतंत्र निर्देशकों से लेकर ‘यश चोपड़ा’ और ‘सुभाष घई’ जैसे व्यावसायिक निर्देशकों तक के साथ काम किया है। या ये कहें कि उनकी फिल्में जावेद के लेखन के कारण इतनी पसन्द की जाती हैं तो इसमें भी कोई दो राय नहीं होगी। वे व्यावसायिक और कला सिनेमा दोनों क्षेत्रों में भारतीय सिनेमा का एक अभिन्न अंग हैं।
सिनेमा और टेलीविजन दोनों की बात करें तो उसमें आने से पूर्व जावेद ने रामपुर से उर्दू साहित्य में स्नातक करने के बाद साल 1959 में बॉम्बे (अब मुंबई) का रुख किया था। मुम्बई में उन्होंने आरम्भिक दौर में ‘खिलाफ़त डेली’ और ‘इंकलाब’ जैसे विभिन्न उर्दू दैनिकों के लिए एक पेशेवर पत्रकार के रूप में काम किया। इसके तुरंत बाद, उन्होंने अपने स्वयं के समाचार पत्र, ‘उर्दू रिपोर्टर’ का सम्पादन भी किया। इसके बाद वे फिल्मी दुनिया से जुड़े और साल 1977 में सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में एक संवाद लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया।
तब से, उन्हें फिल्म निर्माण की विभिन्न शैलियों में उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता रहा है। जिसमें समानांतर सिनेमा की कला फिल्में भी शामिल हैं। मसलन ‘उमराव जान’ , ‘मम्मो’ , ‘फिजा’ , ‘जुबैदा’ और ‘तहज़ीब’। इसके साथ ही कुछ व्यावसायिक हिट फिल्में ‘बाजीगर’ , ‘डर’ , ‘ये दिल्लगी’ , ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ , ‘राजा हिंदुस्तानी’ , ‘परदेस’ , ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’ और ‘कोई…मिल गया’ के लिए लेखन किया। उन्होंने श्याम बेनेगल की ‘भारत एक खोज’ , ‘रमेश सिप्पी’ की ‘किस्मत’ , ‘यश चोपड़ा’ की ‘वक्त’ जैसे धारावाहिकों की पटकथा भी लिखी है।
थिएटर की बात करें तो थिएटर के क्षेत्र में भी वे काफी सफल रहे हैं। एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में इप्टा की सेवा करने से लेकर मराठी इप्टा की उत्पत्ति और उसके विभिन्न कामकाज में भी उन्होंने सराहनीय योगदान दिया है साथ ही इसके नेशनल मेम्बर के रूप में भी इसके साथ जुड़े रहे हैं।
नाटकों में उनके नाटक ‘तुम्हारी अमृता’ , ‘एआर गुर्नी’ के क्लासिक अमेरिकी नाटक ‘लव लेटर्स’ के रूपांतरण ने काफी प्रसिद्धि पाई। इसमें केवल दो कलाकारों ‘शबाना आज़मी’ और ‘फारूक शेख’ को लेकर एक्ट किया गया यह नाटक था। जो एक-दूसरे को लिखे जा रहे पत्र पढ़ रहे होते हैं। उन्होंने इसके रूपांतरण में भी कोई सेट या पोशाक में बदलाव नहीं किया था। 28 दिसंबर, 2013 को ‘फारूक शेख’ की मृत्यु होने तक यह लगभग 21 वर्षों तक चला और भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाले नाटकों में से यह एक नाटक है। इस नाटक का प्रदर्शन दुनिया भर में किया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र में एक विशेष प्रदर्शन भी शामिल है। ऐसा करने वाला यह पहला भारतीय नाटक होने का गौरव भी हासिल कर चुका है।
जावेद सिद्दीकी के अब तक के सिनेमाई लेखन को देखें तो पता चलता है कि उनके लिखे गए संवादों की हरेक पंक्तियाँ हमेशा की तरह मार्मिक एवं असरकारी होती हैं। वे शब्दों के जादूगर तो हैं ही साथ ही उन शब्दों वे जिस तरह खेलते हैं वह भी हर किसी को उनका कायल बना देने की यात्रा तक आपको ले ही आता है। जब वे कभी अपने संवादों से लंबे समय तक दबे हुए दर्द की मर्म को चीर देने वाली याचनाएं करते हैं तो अगले ही पल किसी अन्य उनके कार्य में जब उत्तेजक संवाद लिखते हैं तो यह विशेषता ही उन्हें औरों से अलग लाकर खड़ा कर देती है। उनके संवादों की आग और उसकी लपटें दर्शकों को भीतर तक झुलसाती आई हैं। तो कभी-कभी वे चिलचिलाती गर्मी के बाद तुरन्त होने वाली ताजी-टटकी बारिश की बूंदों की तरह आपको असीम शांत का अनुभव भी कराते हैं।
हाल ही के वर्षों में भी उन्होंने कई फिल्मों और नाटकों के लिए लेखन किया है। जैसे कि ‘बेगम जान’ , ‘आप की सोनिया’ और ‘कच्चे लम्हें’। बता दूं कि जावेद साहब के परदादा ‘हाफिज अहमद अली शौक’ भी एक नामी इतिहासकार रहे हैं और उन्होंने कई किताबें लिखी थीं। वे ‘शाही कुतुब खाना’ के पहले लाइब्रेरियन थे, जिसे अब ‘रजा लाइब्रेरी’ के नाम से जाना जाता है। उनके पिता ‘शुजात अली’ ने उसी पुस्तकालय में एक सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में लंबे समय तक सेवाएं भी दी थीं।
यहां उन्हें अब तक दिए गए सम्मान तथा उनके द्वारा लिखी गई पटकथाओं वाली फिल्में तथा नाटक की सूची भी हम उपलब्ध करवा रहे हैं।
सम्मान –
साल 1994 में ‘बाजीगर’ फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा हेतु फिल्मफेयर पुरस्कार
साल 1996 में ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद हेतु फिल्मफेयर पुरस्कार
साल 1996 में ही फ़िल्म ‘राजा हिंदुस्तानी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा हेतु स्क्रीन अवार्ड
फ़िल्में जिनके लिए लेखन कार्य किया –
शतरंज के खिलाड़ी (1977) अली बाबा और चालीस चोर (1980) उमराव जान (1981) (संवाद) चक्र (1981) सोहनी महिवाल (1984) दो दिलों की दास्तान (1985) नाम ओ निशान (1987) मर मिटेंगे (1988) आखिरी अदालत (1988) शुक्रिया (1988) गुरु (1989) इलाका (1989) बागी ए रिबेल फॉर लव (1990) अंजलि (1990)
अधर्म (1992) (संवाद) बाजीगर (1993) धनवान (1993) डर (1993) मम्मो (1994) चौराहा (1994) ये दिल्लगी (1994) जमाना दीवाना (1995) गद्दार (1995) हम दोनों (1995) दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) चाहत (1996) राजा हिंदुस्तानी (1996) परदेस (1997) डुप्लीकेट (1998) जब प्यार किसी से होता है (1998)
अंगारे (1998) बारूद (1998) सैनिक (1998) दिल क्या करे (1999) ताल (1999) तेरा जादू चल गया (2000)
फ़िज़ा (2000) राजू चाचा (2000) जुबैदा (2001)
चोरी चोरी चुपके चुपके (2001) अलबेला (2001)
क्या यही प्यार है (2002) प्यार दीवाना होता है (2002)
हम किसी से कम नहीं (2002) कोई मिल गया (2003)
ज़मीन (2003) तहज़ीब (2003) दिल मांगे मोर (2004) ब्लैकमेल (2005) बनारस (2006) हमको तुमसे प्यार है (2006) दस कहानियां (2007)
सदियां (2010) सारागढ़ी की लड़ाई (यह फ़िल्म अभी तक बन नहीं पाई)।
नाटकों के लिए लेखन –
तुम्हारी अमृता, सालगिरह, यूँ हमेशा, बेगम जान, आप की सोनिया, कच्चे लम्हें , धुआं, और अगले साल, कटे हुए रास्ते, पतझड़ से जरा पहले , श्याम रंगो, कौन लड़की, रात, मोगरा, माटी कहे कुम्हार से, पीले पट्टों का बना आदि।