राम का विज्ञापन आस्था नहीं राजनीति का हिस्सा है
दिल्ली । राम किसी दिव्य पुरुष का नाम नहीं है । राम मनुष्य की आस्था, शक्ति और सौंदर्य का उज्ज्वल नाम है । यह भी सत्य है कि राम मूर्तियों में नहीं, हमारे जीवन में हैं । जीवन में व्याप्त इसी राम को एक विज्ञापन का रूप देते हुए कुछ लोग हमें कमज़ोर करने का प्रयास कर रहे हैं । हमें इसे समझना ही होगा । कहीं ऐसा न हो कि हमारी आस्था की शक्ति को कोई राजनीति का हथियार बना दे। यह कहना था – 22 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के दरमियां ‘राम का काम’ विषय पर अभिकेंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित करते सुप्रसिद्ध रचनाकार और उत्तराखंड सरकार में उच्च शिक्षा विभाग की पूर्व निदेशक डॉ. सविता मोहन का । आयोजन के मुख्य अतिथि थे जाने-माने लेखक, संपादक व गीतकार डॉ. अजय पाठक।
हिंदी संस्कृति और विश्व बंधुत्व के विकास के लिए सतत्त आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेष तौर पर भारत के डॉ. बीना बुदकी, प्रो.पुष्पा उनियाल, डॉ. रामकृष्ण राजपूत, डॉ. मंजुला दास, राजेन्द्र सिंह, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव ‘असीम’, डॉ. आरती झा, डॉ. रत्ना सिंह, आनंद प्रकाश गुप्ता, डॉ. नमिता चतुर्वेदी, कृष्ण कुमार मरकाम ‘अनुरागी’, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, कामिनी संघवी,डॉ. गीता सराफ़, कुंतला दत्ता, नारायण जोशी, स्वतंत्र कौशल, पूरन सिंह, आशुतोष चतुर्वेदी, रवि भोई, उमा बिष्ट, डॉ. नमिता चतुत्वेदी डॉ. कुँवर जय पाल सिंह, उर्मिला सिंह, डॉ. संदीप पगारे तथा श्रीलंका के प्राध्यापकों, साहित्यकारों तथा शोधार्थियों ने अपने-अपने विशिष्ट शोध आलेखों का वाचन किया ।
सम्मेलन के विभिन्न सत्रों (जैसे संगोष्ठी, सर्वभाषा रचनापाठ, सांस्कृतिका आदि) में केलानिया युनिवर्सिटी, कोलंबो के हिंदी साहित्य तथा विभिन्न संकाय के विभागाध्यक्ष सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्रायें, रचनाकार, संस्कृतिकर्मी औऱ गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या सहभागी बने, जिसमें प्रमुख रूप से डॉ. लक्ष्मण, डॉ. उपल रंजीथ, डॉ. नीता सुभाषिणी, डॉ. इ.जी.वज़ीर गुणसेना, डॉ. अनुषा निल्मणि, डॉ. आमिला, श्रीमती बसंथ पद्मिनी, डॉ. निरोशा साल्वथुरा, डॉ. संगीथ रत्नायके, डॉ. जे.ए.डी. सरसी उपेक्षिका रणसिंह, सुश्री सुभा रत्नायक आदि हैं ।
सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि श्रीलंका के अहिंदीभाषी रचनाकारों की कृतियों का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन परिवार द्वारा किया जायेगा ।
एक शब्द ऋषि के देश में
(हिंद महासागर तट पर31 किताबों का लोकार्पण)
22 वें अंहिंस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हिंदी की 31 कृतियों और पत्रिकाओं के नये अंक का विमोचन हुआ, इसमें शोध कृति-श्रीलंका में बौद्ध धर्म (आनंद प्रकाश गुप्ता), गीत संग्रह-चंदन वन जल गया (डॉ. अजय पाठक), यात्रा वृतांत-सुख शांति के प्रतीक प्रतीक भूटान की यात्रा, इतिहास- भारत की अनार्य संस्कृति और उसके महापुरूष (डॉ. रामकृष्ण राजपूत), नवगीत संग्रह-खेमों में बँटे लोग (डॉ. अरविंद श्रीवास्तव), इतिहास-गाजीपुर जनपद का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक विमर्श (डॉ. रत्ना सिंह), पत्रिका-समवेत सृजन (रवि भोई), पत्रिका-ट्रू मीडिया (ओम प्रकाश प्रजापति), लघुकथा संग्रह-नंगा कोरोना (डॉ. जसवीर चावला), उपन्यास-वनगमन और दंडकारण्य की ओर, यात्रा-वृतांत-पातालकोट जहाँ धरती बाँचती है प्रेमपत्र, कहानी संग्रह-खुशियों वाली नदी (गोवर्धन यादव), उपन्यास- देह के पुल पर खड़ी लड़की, कहानी संग्रह-अकेली लड़की, आलेख-और आदमी मर जाता है (कृष्णा नागपाल), कहानी संग्रह-अमरूद का पेड़ (हरिप्रकाश राठी), डायरी-सदके करूँ सरीर (अंबिकादत्त चतुर्वेदी), उपन्यास-बसंती की बंसत पंचमी, हड़सन तट का जोड़ा, मगंल ग्रह के जुगूनू तथा मेरी कहानियाँ (प्रबोध खुमार गोविल), विचार-राजनीति का धरम-करम : धरम करम की राजनीति (डॉ. जयप्रकाश मानस), यात्रा-संस्मरण एक शब्द ऋषि के देश में और कविता संग्रह जैसे प्राणों में हँसता है सूर्य (सवाई सिंह शेखावत) आदि प्रमुख हैं ।
सम्मेलन के सांस्कृतिका सत्र में युनिवर्सिटी ऑफ केलानिया के कला विभाग के छात्रों द्वारा लार्ड शिवा नामक नृत्य नाटिका के अलावा भारत के सुप्रसिद्ध नृत्याँगनाओं डॉ. काजल मूले, ममता अहार तथा कविता गुलकरी द्वारा क्रमशः कत्थक, मोनोप्ले (वैदेही) तथा शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति दी गई जिसे स्थानीय दर्शकों का काफ़ी प्रतिसाद मिला ।
केलानिया विश्वविद्यालय द्वारा 50भारतीय लेखकों का अभिनंदन
सम्मेलन के संस्थापक समन्वयक व साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश मानस ने विगत 2 दशकों से हिंदी के संवर्धन के लिए सक्रिय संस्था अंहिंस से परिचित कराते हुए कहा कि – “अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन एक ऐसा परिवार है, जिसके सदस्य भले ही लेखन और विचारधारा के स्तर पर परस्पर सहमत नहीं, किन्तु हिंदी साहित्य और संस्कृति के वैश्विक विस्तार के लिहाज़ से ठीक ऐसे संगठित हैं, जैसे कोई रक्त संबंधी हों । पिछले 20-21 सालों से अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की रचनात्मकता और विश्वसनीयता का प्रश्नांकित रहस्य भी यही है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन मूलतः स्वाश्रयी, स्वावलंबी, स्वाध्यायी और स्वतंत्र चेतना के अनुयायियों का ऐसा संगठन है जो गौतम बुद्ध की जिज्ञासा, कबीर की घुमक्कड़ी, राहूल सांस्कृत्यायन की यायावरी और बाबा नागार्जुन की फक्कडी पर यदकिंचित आस्था रखते हैं । अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के पाठों का व्यवहारिक अर्थ इन्हीं रास्तों से तलाशने का एक अति लघु प्रयास है ।”
अगला सम्मेलन जापान में
उल्लेखनीय है कि बिना किसी केंद्रीय या राज्य सरकार के सहयोग, विश्व भर में सृजनरत हिंदी औऱ भारतीय भाषाओं के सक्रिय और प्रवासी रचनाकारों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इससे पूर्व रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया, ताशकंद, संयुक्त अरब अमीरात, दुबई, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल, इडोनेशिया (बाली), गुवाहाटी (असम), राजस्थान, रूस, ग्रीस, म्यांमार, वियतनाम, भूटान में 21-21 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों का आयोजन संपन्न हो चुका है । सम्मेलन में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. खगेन्द्र ठाकुर, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, टी.एस. सोनवानी के बाद ख्यात शिक्षाविद् और साहित्यकार डॉ. सविता मोहन को अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का अध्यक्ष मनोनीत किया गया । उन्होंने अगले अर्थात्क 22 वां सम्मेलन जापान में आगामी नवंबर में आयोजित किये जाने की विधिवत घोषणा की ।
कोलंबो सम्मेलन के दौरान भारत के विभिन्न प्रांतों से पहुँचे रचनाकारों और हिंदीसेवियों के सम्मान में केलानिया विश्वविद्यालय कोलंबों और श्रीलंका में हिंदी के विकास के अग्रसर संस्थाओं द्वारा आयोजित स्नेह समारोह में 50से अधिक रचनाकारों, संपादकों व हिंदी-शिक्षकों को प्रतीक चिन्ह, उत्तरीय, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया ।
रचनात्मक योगदान के लिए 14 रचनाकारों का अलंकरण
22वें वार्षिक अलंकरण समारोह मेंडॉ. रुपा सिंह और डॉ. बीना बुदकी (सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान -11,000 रूपये), उर्मिला सिंह और जयश्री नंदा (सिंधु रथ स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), डॉ. लता हिरानी और कामिनी संघवी (सलेकचंद जैन स्मृति सम्मान-11,000 रूपये) जवाहर गंगवार और चेतन भारती (दाऊ कल्याण सिंह स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), सुषमा राउत तथा बीनापाणि मिश्र (डॉ. सच्चिदानंद त्रिपाठी स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), प्रो. पुष्पा उनियाल और डॉ. आरती झा (डॉ. श्यामलाल निर्मोही स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), ग्रूप कैप्टेन कुँवर जयपाल सिंह (कर्नल विप्लव त्रिपाठी स्मृति सम्मान-5000 रूपये), कत्थक नृत्याँगना डॉ. काजल मूले (डॉ. ब्रजवल्लभ मिश्र स्मृति सम्मान-5000 रूपये) डॉ. पुष्पा जोशी, (उर्मिला गुप्त स्मृति सम्मान – 5000रुपये) को पुरस्कृत किया गया ।
इसके अलावा ख्यात पुरातत्वविद डॉ. रामकृष्ण राजपूत (सिरिमाओ भंडारनायके स्मृति सम्मान), उपन्यासकार डॉ. हरिसुमन बिष्ट (आपका तीस्ता हिमालय सम्मान), युवा इतिहासकार डॉ. रत्ना सिंह, गीतकार डॉ. अरविदं श्रीवास्तव ‘असीम’ तथा कृषि वैज्ञानिक व लेखक डॉ. जगन्नाथ सदाशिव राव उरकुरकर तथा शिक्षाविद् डॉ. सविता मोहन को उनके रचनात्मक योगदान के लिए ट्रू मीडिया सम्मान से अंलकृत किया गया ।
अंतरराष्ट्रीय रचनापाठ में 7 भाषाओं की भागीदारी
अंतरराष्ट्रीय रचना पाठ सत्र में सिंहली और श्रीलंकन भाषा सहित गुज़राती, हिदी ओडिया, कश्मीरी, असमिया, तमिल, छत्तीसगढ़ी, उत्तराखंडी, राजस्थानी सहित कई जनपदीय भाषाओं की उत्कृष्ट रचनाएँ तथा उसके अनुवाद का वाचन किया गया है। रचना पाठ करने वाले भारतीय रचनाकारों में प्रमुख हैं – डॉ. अजय पाठक, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, मुमताज डॉ. मनोहर लाल श्रीमाली, कुंतला दत्ता, युक्ता राजश्री झा, किरणबाला जीनगर, जगमोहन आजाद, लताबेन हिरानी, मंजू भटनागर आदि प्रमुख हैं ।
11 राज्य के 56 प्रतिनिधिय़ों की भागीदारी
22 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (18 से 25 फरवरी तक) को सफल बनाने में देश-विदेश की जिन सांस्कृतिक संस्थाओं और पत्रिकाओं ने प्रायोजन सहयोग किया उनमें प्रमुख हैं – युनिवर्सिटी ऑफ केलानिया कोलंबों, सृजन-सम्मान छत्तीसगढ़, डॉ. सच्चिदानंद त्रिपाठी स्मृति संस्थान कटक, आपका तीस्ता हिमालय सिलीगुड़ी, ट्रू मीडिया दिल्ली, सलेकचंद जैन स्मृति संस्थान दिल्ली, डॉ. ब्रजवल्लभ मिश्र स्मृति संस्थान पुणे, सिंधुदेवी रथ स्मृति संस्थान रायगढ़, कर्नल विप्लव त्रिपाठी स्मृति संस्थान रायगढ़, डॉ. सुरेश चंद्र गुप्त स्मृति संस्थान सोनीपत । 22 वें सम्मेलन विशेष तौर पर भारत के प्रमुख 11 राज्य के अन्य रचनाकारों की भागीदारी रही जिनमें कुणाल जैन, कपिल देशलहरा, कमला विष्ट, रेखा उरकुरकर, स्वतंत्र कौशल, अरुंधती भोई, सुनील भटनागर, डॉ. सौमित्र पगारे, हितेश भोई, डॉ. रीता पाठक, आशा चौहान, सुमन गुप्ता, रूद्र प्रताप सिंह आदि प्रमुख हैं ।
(स्वतंत्र कौशल की रपट)