1.
भटका न दे मुझे कभी शब्दों का घालमेल
खामोशियों में कैद है अर्थों का घालमेल
मल्लाह लेके नाव है बैठा हुआ उदास
तूफां के साथ देखके लहरों का घालमेल
थोड़ा यकीन करके दवाई तो लेके देख
तकलीफ खूब देता है जोड़ों का घालमेल
जड़ से उखाड़ दे न ये भारत की सभ्यता
दिखने लगा है आजकल रिश्तों का घालमेल
जो दूसरा होता तो मैं इग्नोर कर जाती
महबूब ही करने लगा वादों का घालमेल
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2.
अनकही-अनसुनी इक कहानी -सी मैं
इक परी लोक की राजरानी-सी मैं
कितनी सदियों से कल-कल- सी बहती रही
एक निश्छल नदी की रवानी-सी मैं
झील-सी इक नज़र का असर देखिए
फिर से होने लगी आसमानी-सी मैं
अपने मन पे हर -इक हर्फ चस्पाँ किये
खत लिए फिर रही हूँ पुरानी-सी मैं
नर्म -सी घास पर औधें लेटे हुए
अब तो होने लगी हूँ सुहानी -सी मैं
शब्द के फूल से गुदगुदाया बदन
शर्म से हो रही पानी -पानी -सी मैं
धूप की राह में छाँव जो मिल गयी
खिल रही, बिछ रही रात -रानी -सी मैं