उभरते स्वर
फ़ासले, सूनापन, मायने और नजदीकी
फ़ासले जो कभी तय न कर पाये
हमारे बीच का मौसम
काग़ज़ पर सवार होकर
शायद ये लफ्ज़
तुम तक पहुँचने में
कामयाब हो जाए
हमारे भीतर ठहरा
गर्म साँसों का उफ़ान लिए
किसी कोहरे की चादर ओढ़े
शायद ये सूनापन
इन सर्द हवाओं में
बस यूँ घुल जाए
जज़्बात कभी नहीं बदले
बदले तुम भी नहीं
बदल गए है मायने
शायद ये परवाह बनके
इस बार ज़ेहन बनके
तुम तक पहुँच जाए
वक्त भी कहाँ ठहरा है?
अब पलों में दोड़ने लगा है
दूरियाँ भी बढ़ी हैं
शायद वो नजदीकी हमें
इस बार कब्र के रास्ते ही सही
पर मिल जाए
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अब के अगर मिलो तो याद रखना
अब के अगर मिलो तो याद रखना
फूलों का गुलदस्ता मत लाना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी निशानी समझ मैं उसे साथ रखे रही थी
तो पतझड़ जैसे बिन मौसम ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
मेरे हाथों को मत चूमना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारे एहसास संभालने में मैं उसे जकड़े रहती थी
तो जकड़न जैसे पूरे बदन पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
कॉफी के लिए मत पूछना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी फूंककर ठंडी की हुई समझ मैं उसे पीने लगती थी
तो हलचल जैसे दिलो-दिमाग पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
कोई नया किस्सा मत सुनाना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी बातें वो याद कर रातभर तड़पती रहती थी
तो करवट भरी सिलवटें बिस्तर पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
मेरा पसंदीदा गाना मत लगाना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी पसंद के ही गाने मैं अक्सर सुनती रहती थी
तो सरगम तुम्हारे प्यार की सांसों पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
अपने आगोश में मत ले लेना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारा अक्स रोज बेपलक आईने में ढूंढ़ती रहती थी
तो रौनक अपने आप चहेरे पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
देर रात तक बातों में मत जगाना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी तस्वीर से रात भर बातें करती रहती थी
तो शबनम सुबह जैसे आँखों पर ही छा जाती थी
अब के अगर मिलो तो याद रखना
बिछड़ने के लिए मत मिलना हर बार की तरह
जब तुम नहीं थे साथ तो
तुम्हारी कमी ही चारों तरफ साथ रहती थी
तो रहमत करना अब बस यही याद रखना
– जिगीषा राज