उभरते-स्वर
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी मुझे बहुत कुछ सिखा रही है
कभी हंसना तो कभी रोना सिखा रही है
मेरी अँधेरी दुनिया में झांक कर देखो
ज़िन्दगी इक नया दीपक जला रही है
बिछड़ने की मैंने जिनसे की थी दुआएँ
ज़िन्दगी क्यों उनके क़रीब ला रही है
झूठी दुनिया में मैं पल रही हूँ देखो
ज़िन्दगी क्यों सच से रू-ब-रू करा रही है
नफ़रत होती थी जिस नाम से मुझे
ज़िन्दगी क्यों उससे प्यार करना सिखा रही है
मेरी कश्ती तूफानी भँवर में डूबने लगी है देखो
ज़िन्दगी क्यों इसे फिर साहिल पे ला रही है
मैं एक दिन दुनिया से कूच कर जाऊंगी देखो
ज़िन्दगी क्यों फिर जीने की राह दिखा रही है
धुंआ बनकर आसमां में गुम हो जाऊंगी कहीं
ज़िन्दगी क्यों मुझे मोम-सा जलना सिखा रही है
ज़िन्दगी समरीन फिर जीना सिखा रही है
खुद ही ज़हर के घूँट पीना सिखा रही है
– समरीन बानो