ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल
ख़ुदकुशी करना बहुत आसान है
जी के दिखला, तब कहूँ इनसान है
सारी दुनिया चाहे जो कहती रहे
मैं जिसे पूजूँ वही भगवान है
चंद नियमों में न ये बँध पाएगी
ज़िंदगी की हर अदा ज़ीशान है
टिक नहीं पाएगा कोई सच यहाँ
झूठ ने जारी किया फ़रमान है
भीगा मौसम कह गया ये कान में
क्यों तेरे दिल की गली वीरान है
जबसे चिड़िया ने बनाया घोंसला
घर मेरा तब से बहुत गुंजान है
************************
ग़ज़ल
जादू हवा बसंत की कुछ ऐसा कर गयी
गुलशन के सारे फूलों की रंगत निखर गयी
कच्चा मकां तो ऊँची इमारत में ढल गया
आँगन में वो जो रहती थी चिड़िया किधर गयी
पूरी तरह से खिल भी न पायी थी जो कली
कुछ वहशियों के हाथ कुचलकर वो मर गयी
अब तक करोड़ों लोगों को रोटी नहीं नसीब
जो रहनुमाँ हैं उनकी तिजोरी तो भर गयी
सेंकी है हादसों पे सियासत ने रोटियाँ
क्यों हादसा हुआ न किसी की नज़र गयी
लाशों के बदले बाँट दिए कुछ मुआवज़े
यूँ ज़िम्मेदारियों से हुकूमत उबर गयी
हालात ज्यों के त्यों ही रहे मेरे गाँव के
काग़ज़ पे ही विकास की दिल्ली ख़बर गयी
भूमंडलीकरण ने बनाये बहुत अमीर
लेकिन गरीब लोगों की दुनिया बिखर गयी
मंज़र अजीब-सा है जहाँ आ गए हैं हम
जंगल है खौफ़नाक जहाँ तक नज़र गयी
जन्मी जो एक प्यारी-सी बिटिया हमारे घर
बेनूर था जो घर उसे पुरनूर कर गयी
ऊँची उड़ान भरने की सौ हसरतें लिए
पिंजरे में क्या फँसी कि वहीं वो ठहर गयी
वो मौत के शिकंजे से लो बच के आ गया
सारे हितैषियों की दुआ काम कर गयी
हर कश्मकश ने हमको दिया हौसला ‘किरण’
ये ज़िंदगी हमारी ग़मों से संवर गयी
– ममता किरण