ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
इक ख़ुशी की तलाश जारी है
दिन भी भारी है रात भारी है
ऐ ख़ुदा सिर्फ तुझको पाने का
मेरे सर पर जुनून तारी है
मौत मंज़िल पे आ गयी मुझको
हाय! किस्मत कहाँ पे हारी है
और तो कुछ नहीं किया मैंने
ज़िंदगी ख़्वाब में गुज़ारी है
तुझसे शिकवा सदा रहेगा ‘लकी’
तूने किस्मत नहीं सँवारी है
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ग़ज़ल-
सोचता हूँ इस जहां में मुझ-सा तनहा कौन है
बाँट ले तनहाई मेरी शख्स़ ऐसा कौन है
क्या बताऊँ मेरे दिल पर क़हर उसने ढा दिया
सामने उसके गया जब मुझसे पूछा कौन है
फिर छलक उट्ठे मेरी आँखों से आँसू ख़ुद-ब-ख़ुद
जब अकेले बैठकर सोचा कि मेरा कौन है
हाँ, मरीज़-ए-इश्क़ तेरे शहर में होंगे बहुत
पर दीवाना तू बता दे मेरे जैसा कौन है
हिचकियों पर हिचकियाँ आने लगी हैं आजकल
हाय शिद्दत से मुझे अब याद करता कौन है
– लकी निमेष