ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
खेत, मेघ, दरिया की बात अब पुरानी है
खोई गाँवों ने अस्मत, थम गई रवानी है
अब न सजतीं चौपालें, पेड़ कट गए सारे
आम, नीम, पीपल की रह गई निशानी है
गाँव में जो बसता था वो किधर गया भारत
आधुनिकता की आँधी ला रही विरानी है
हावी हो गया फैशन इल्म और हुनर पर अब
सर से पल्लू उतरा है, आँखों में न पानी है
स्क्रीन और गूगल ने, खेल छीने बच्चों के
बिन जिये ही बचपन को आ गयी जवानी है
वो लुका-छिपी, गिल्ली-डण्डा वाले दिन बीते
विडियो गेम का कोई अब हुआ न सानी है
पोखरों में सूखा जल, हैं मवेशी ख़तरे में
उनको डाल संकट में खुद भी मुँह की खानी है
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ग़ज़ल-
दिल से दिल का इशारा हुआ
ख़ूबसूरत नज़ारा हुआ
जब तलक दूर था, था, मगर
अब वो आँखों का तारा हुआ
देह माटी की मूरत लगी
मौत का जब इशारा हुआ
तेरी यादें ही सहलाती हैं
हिज़्र का जब भी मारा हुआ
जमती है अपनी दरियादिली
इसलिए सबका यारा हुआ
सारे जग से रहा जीतता
तुमसे ही पर हूँ हारा हुआ
माँ की बातों का पालन किया
ऐसे ही थोड़ी प्यारा हुआ
– डॉ. कविता विकास