ग़ज़ल
रंगों में ख़ुदा आज दिखा रंग मुबारक
होली है मेरे दोस्त, सुना रंग मुबारक
फैला है धनक में तो है फूलों में भी बिखरा
जैसे कि ख़ुदा बोल उठा, रंग मुबारक
मैंने भी भरम तोड़ दिए छोड़ अना को
उसने भी कहा दिल का रखा रंग मुबारक
वाक़िफ़ हूँ मैं भी उसके सितम और करम से
क़ातिल था वो लहजा सो कहा- “रंग मुबारक”
घूँघट में खिला चाँद हुई द्वार पे आहट
साजन जो मेरे आए हुआ रंग मुबारक
जो ख़ून बहाया गया नफ़रत में, है ज़ाया
जो देश की ख़ातिर है बहा रंग मुबारक
हैं रंग बता कितने तेरे पास मुसव्विर
हँसते हुए चेहरों को सजा रंग मुबारक
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ग़ज़ल-
ग़ज़ल हूँ यूँ सँवरती जा रही हूँ
मैं हर मिस्रे में मरती जा रही हूँ
मुझे क़िस्सों की आदत पड़ गई है
मैं इक किरदार बनती जा रही हूँ
मैं इक हिचकी पे ख़ुश होने लगी हूँ
सितारों पर ठहरती जा रही हूँ
सुना है तुमको कोई मिल गया है
मैं बस करवट बदलती जा रही हूँ
ज़रा कोई इशारा दे दो जानां
मैं उम्मीदों से लड़ती जा रही हूँ
मुसलसल ज़िंदगी से रूठना क्या
नये ज़ेवर पहनती जा रही हूँ
जवाबों की नहीं दरकार ‘पूनम’
सवालों पर ठहरती जा रही हूँ
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ग़ज़ल-
ग़रीबों के आँगन हैं सबसे बड़े
ये दुनिया के गुलशन हैं सबसे बड़े
बड़ी मुख़्तसर-सी रही बात ये
कि हम अपने दुश्मन हैं सबसे बड़े
ज़रा देख जलते हुए शहर को
सियासत के रौज़न हैं सबसे बड़े
कहाँ से चले हम कहाँ के लिए
तरक़्क़ी के तौसन हैं सबसे बड़े
ये ख़ानाबदोशी, ये आवारापन
मुहब्बत में फिसलन हैं सबसे बड़े
तेरा इश्क़, हमको तेरी आरज़ू
ख़ुशी के ये क़दग़न हैं सबसे बड़े
वो ‘पूनम’ की बेचैन रातें सनम
मेरे साथ रहज़न हैं सबसे बड़े
– पूनम सोनछात्रा