ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
पराया कौन है और कौन है अपना, सिखाया है
हर इक ठोकर ने हमको सोचकर बढ़ना सिखाया है
नहीं हम हार मानेंगे भले हों मुश्किलें कितनी
चिराग़ों ने हवाओं से हमें लड़ना सिखाया है
वही है चाहता हम झूठ उसके वास्ते बोलें
हमेशा हमको जिसने सच को सच कहना सिखाया है
हमें कमज़ोर मत समझो, बहुत-कुछ झेल सकते हैं
हमें हालात ने हर ज़ख़्म को सहना सिखाया है
वो पत्थर रेत बन बैठे समन्दर तक पहुँचने में
नदी ने जब उन्हें ‘गरिमा’ ज़रा बहना सिखाया है
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ग़ज़ल-
वो मेरे दिल को आसरा देगा
या मुझे प्यार में दग़ा देगा
वो जो रखता है हौसला अन्दर
उसको सागर भी रास्ता देगा
वो जो औरों को मौत देता है
उसको जन्नत कहाँ ख़ुदा देगा
ठूँठ होकर भी बूढ़ा बरगद तो
अपनी शाख़ों पे आसरा देगा
बनके रहबर वो एक दिन ‘गरिमा’
ज़ुल्म की आग को हवा देगा
– गरिमा सक्सेना