ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
न काम वक़्त पे आते हैं हैं ख़ून के रिश्ते
बस अब तो ख़ून बहाते हैं ख़ून के रिश्ते
वो फ़ेल जिनको कि दुश्मन भी छोड़ देते हैं
अमल में उनको भी लाते हैं ख़ून के रिश्ते
उतार लेते हैं गर्दन तलक बहाने से
गले कुछ ऐसे लगाते हैं ख़ून के रिश्ते
करो हज़ार जतन पर पनप नहीं सकते
वो लोग जिनको मिटाते हैं ख़ून के रिश्ते
सितम तो ये है कि ‘फ़ानी’ दवा के कासे में
शदीद ज़हर पिलाते हैं ख़ून के रिश्ते
फ़ेल= कार्य, शदीद= तेज़/ज़्यादा
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ग़ज़ल-
ज़िम्मा ज़िम्मेदार पर भारी पड़ा
यार का ग़म यार पर भारी पड़ा
सबकी नज़रें खींच लीं कमबख़्त ने
एक तिल रूख़्सार पर भारी पड़ा
धुन्ध, तन्हाई, उदासी, उसका ग़म
मैं अकेला चार पर भारी पड़ा
साए को आँका था कम दीवार ने
साया ही दीवार पर भारी पड़ा
उसका मुझको मुस्कुरा कर देखना
ग़म के हर इक वार पर भारी पड़ा
आँसू पलकों से निकल कर आ गया
चोर पहरेदार पर भारी पड़ा
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ग़ज़ल-
दिल के मुआमलात निपटने की रात है
कल जो गया था उसके पलटने की रात है
उसको मैं अपने साथ रखूँ किस तरह भला
ये रात अपने आप से कटने की रात है
जब नींद आ रही है तो आएँगे ख़्वाब भी
या’नी तबर्रूकात के बँटने की रात है
काग़ज़ पे लिख रहा हूँ तेरा नाम बार-बार
हाथों से तेरे नाम को रटने की रात है
तह कर के आज रख दो ज़मीन और आसमान
मैंने सुना था सब के सिमटने की रात है
मैं जिस्म था तो कह दिया सोने की है ये रात
वो रूह थी तो बोली भटकने की रात है
आना कहीं पे ‘फ़ानी’ बदन छोड़ कर यहाँ
ये रात तो हिजाब के हटने की रात है
मुआमलात= मामले, तबर्रूकात= प्रसाद
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ग़ज़ल-
वो जिसको आग की जागीर से उठाना था
बज़िद था मोम की ज़ंजीर से उठाना था
वो एक रंग ही आँखों के हाफ़िज़े में नहीं
वो एक रंग जो तस्वीर से उठाना था
सितम तो ये था कि अपने लहू के क़तरों को
हमें ख़ुद अपनी ही शमशीर से उठाना था
उठा लिया था उसे हमने जल्दबाज़ी में
वो इक क़दम जिसे ताख़ीर से उठाना था
किसी की क़ब्र से उठता हुआ धुँआ सोया
उसे भी सल्तनते-मीर से उठाना था
क्यों ले के लाए हो अशआर ‘फ़ानी’ ख़्वाबों के
एक-आध शेर तो ताबीर से उठाना था
बज़िद= ज़िद पे अड़ा, हाफ़िज़ा= याददाश्त, ताख़ीर= विलम्ब
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ग़ज़ल-
जब मर गया नमी में लिटाया गया मुझे
ज़िन्दा रहा तो रोज़ जलाया गया मुझे
रहमान और रहीम बताया था बाद में
पहले ख़ुदा से ख़ूब डराया गया मुझे
थी दाएँ-बाएँ मेरे ये दुनिया बँटी हुई
दीवार की तरह से उठाया गया मुझे
अशआर मेरे मुझको सुनाए गए बहुत
मेरे जिगर का ख़ून पिलाया गया मुझे
तज़्हीक मेरे दर्द की हर गाम पर हुई
काँधों पे आँसुओं के उठाया गया मुझे
रहमान-रहीम= कृपालु/दयालु, तज़्हीक= मखौल उड़ाना
– फ़ानी जोधपुरी