ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
ख़ूबसूरत वादियों का जब नज़ारा हो गया
फिर तुम्हारी याद का रौशन सितारा हो गया
कर दिया था मौजों ने कश्ती को तूफां की नज़र
आप माझी बनके आये तो किनारा हो गया
पहले तो कहता रहा सच कहना जो भी कहना तुम
सच कहा तो ये जहां दुश्मन हमारा हो गया
बंद हमने कर लिया आंखों में गुलमंज़र तमाम
रात उसकी हो गई और दिन हमारा हो गया
एक ऐसा मोड़ आया ज़िंदगी में ‘आरती’
हम किसी के हो गये कोई हमारा हो गया
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ग़ज़ल-
मैं तेरा कर्ज़े-मोहब्बत हूँ चुका ले मुझको
ज़िंदगी भर के लिए अपना बना ले मुझको
चाँदनी रात, ये सावन का सुहाना मौसम
ऐसे में आके सनम मुझसे चुरा ले मुझको
मुझसे नाराज़ न होना कि मैं मर जाऊंगी
रूठ जाऊं तो सनम आके मना ले मुझको
मेरी दुनिया मेरा मसकन मेरी जन्नत तू है
मुझको सीने से लगा पास बुला ले मुझको
तुझ को महफूज़ बलाओं से रखूँ गी हर दम
अपना तावीज़ बना दिल से लगा ले मुझको
तू मेरा जाने जिगर तू मेरी अंतिम चाहत
रब से मांगा है तुझे तू भी मना ले मुझको
तुझ को चाहा, तुझे पूजा, किये सजदे मैने
आरती हूँ मैं इबादत में जला ले मुझको
– डॉ. आरती कुमारी