ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
बदन में कुछ शरारे हैं, रहेंगे
तसव्वुर में सितारे हैं, रहेंगे
रहेगी पाँव में आवारगी भी
जो घर हमने संवारे हैं, रहेंगे
यहाँ से आसमां अच्छा लगा था
ये जंगल भी हमारे हैं, रहेंगे
मेरे असबाब कमरे से निकालो
परिंदे ढेर सारे हैं, रहेंगे
हवा, तारे, अँधेरे, चाँद, जुगनू
जो रातों के सहारे हैं, रहेंगे
मैं गीली आँख रख आया वहीं पर
जहाँ साए तुम्हारे हैं, रहेंगे
ख़ुदा मालिक रहे ऐसे जहां का
यहाँ हम-से बेचारे हैं, रहेंगे
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ग़ज़ल-
इसे सपनों से छुटकारा नहीं है
ये दिल फ़ितरत से आवारा नहीं है
हमारा घर यहीं, जंगल यहीं है
हमें संसार कम प्यारा नहीं है
किसे जीने दिया है ज़िन्दगी ने
किसी को मौत ने मारा नहीं है
किसे भी जीतने की क्या ख़ुशी है
जो ख़ुद को आपने हारा नहीं है
अगर दो ख़्वाब बाक़ी है दिलों में
कोई दुनिया में बेचारा नहीं है
अगर रौशन नहीं है राह अपनी
अँधेरा भी बहुत सारा नहीं है
मेरी आवारगी पर हँसने वालो!
कोई मन है जो बंजारा नहीं है
– ध्रुव गुप्त