सुन रहा हूँ आजकल मैं सिसकियों का शोर
जज़्ब है मेरे हृदय में चुप्पियों का शोर
दूरियों, नज़दीकियों फिर दूरियों का शोर
इक घने जंगल में जैसे हाथियों का शोर
डाकिए ने बैग में रक्खा इन्हें महफूज़
बैग में होने लगा तब चिट्ठियों का शोर
देखिए बच्चा हमारा आज है चुपचाप
फिर भी उसके मन में है शैतानियों का शोर
आधुनिकता से चले दो चार होने बाग़
गाँव में बढ़ने लगा है आरियों का शोर
जब कभी भी हमने माँगा उनसे अपना हक़
गुम हुई आवाज़ सुनकर लाठियों का शोर
अब सँभालेगी हमें क्या आज चिल्लाहट
जान पर भारी हुआ ख़ामोशियों का शोर
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ग़ज़ल-
तीरगी के हाथ में जुगनू रखेंगे
और अपनी आँख में आँसू रखेंगे
इस तरह भी ख़ुद पे अब क़ाबू रखेंगे
अपने पहलू में तेरे गेसू रखेंगे
पत्थरों को भी उड़ाएंगे हवा में
हम कभी जब हाथ में डमरू रखेंगे
पीठ पर हमले का मौका मिल गया तो
दोस्त अपने हाथ में चाक़ू रखेंगे
भावनाओं को जिएंगे हिन्दवी में
और अपनी बात में उर्दू रखेंगे
फिर कहीं ‘चम्पक’ रखेंगे ज़ेहन में हम
खिलखिलाता खेलता ‘चीकू’ रखेंगे
गुनगुनाकर बस तुम्हारी याद ‘हँसमुख’
हम जहाँ में हिज़्र की ख़ुशबू रखेंगे
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ग़ज़ल-
कोठियों का गणित, झुग्गियों का गणित
जज़्ब सबमें रहा सिसकियों का गणित
गिनतियाँ पोर से फिर फिसलने लगीं
और ज़ाया हुआ उँगलियों का गणित
मेरे खूँ की सियाही से हल हो गयीं
पूछिए मत अभी रोटियों का गणित
एक दीवार आँगन में उठने लगी
इसने हल कर दिया भाइयों का गणित
मैं क़दम -दर- क़दम आगे बढ़ता रहा
मुझपे लागू रहा सीढ़ियों का गणित
आपकी ख़ूबियाँ ख़ूबतर थीं मगर
मुझको छलता रहा ख़ामियों का गणित
उनके आगे न भर कोई परवाज़ तू
उनको मालूम है कैंचियों का गणित
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ग़ज़ल-
आपकी ये बात बातों की खनक
छल रही है सिर्फ़ वादों की खनक
पाँचवें लम्हे में ग़ायब हो गयी
ज़िन्दगी के चार लम्हों की खनक
रात लाती आँख की दहलीज़ पर
पोटली में बाँध सपनों की खनक
नाप लेंगी बेटियाँ आकाश को
दीजिए इनको इरादों की खनक
ये मुझे बहरा बनाएंगी सदा
दीजिए मत आप सिक्कों की खनक
– हँसमुख आर्यावर्ती