ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
दिखाने को भले वो ज़ख़्म पर मरहम लगाता है
मुझे लाचार जब देखे, नहीं फूला समाता है
ग़मों से जूझता इंसान यूँ जाता निखर अक्सर
ज़माने को वही इक दिन नयी राहें दिखाता है
समझती क्यूँ नहीं कोई बदी इतनी हक़ीक़त को
ख़ुदा ही हर किसी को ज़िन्दगी देता, मिटाता है
वहाँ ज़िन्दादिली से ज़िन्दगी जीना सरल है क्या
जहाँ हर बात पर हम पर कोई तोहमत लगाता है
फ़रेबी-जालसाजों की क़दर होती यहाँ अब तो
वहीं बेदाम सच हर इक क़दम पर मात खाता है
लिखा है मुल्क की क़िस्मत में क्या, ये तो ख़ुदा जाने
कोई भी सिरफ़िरा ख़ुद को यहाँ नेता बताता है
कलम है हल, ज़मीं काग़ज़, लहू से सींचकर ‘निर्भय’
सुहाने गीत-ग़ज़लों की नयी फ़सलें उगाता है
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ग़ज़ल-
कहीं सूरज चमकता तो कहीं काली घटाएँ हैं
यही दो ज़िन्दगी की ख़ूबसूरत-सी अदाएँ हैं
किसी के पास दौलत है, किसी के पास है शोहरत
किसी के पास पूँजी में महज़ दोनों भुजाएँ हैं
कई जो कंटकों को रौंदकर आगे बढे उनसे
वजह पूछी तो बोले ‘सब बुज़ुर्गों की दुआएँ हैं’
किसी को ज़िन्दगी कुछ भी यहाँ यूँ ही नहीं देती
जिसे जो भी मिला, समझो कभी क़ीमत चुकाएँ हैं
तुम्हारी दृष्टि में तो ख़ूबसूरत-सी ग़ज़ल होगी
हमारे वास्ते ये दर्द से उठती सदाएँ हैं
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ग़ज़ल-
किसी संघर्ष में पल-पल हमारे पास होता है
वही तो ज़िन्दगी में शख़्स अपना ख़ास होता है
यक़ीनन ख़ून के रिश्ते निभाते एहमियत लेकिन
वही सम्बन्ध सच्चे हैं जहाँ एहसास होता है
जहाँ भी मंथरा-शकुनी जमाकर पाँव रख देते
वहाँ फिर राम जैसों का सदा वनवास होता है
हज़ारों जंग ऐसी जीतने से हारना अच्छा
विजय के बाद जिसमें क्षोभ का आभास होता है
कहा था कृष्ण ने, अर्जुन !यही है सार जीवन का
सभी निष्काम कर्मों में ख़ुशी का वास होता है
– विनोद निर्भय