ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
आँसुओं सँग मुस्कुराना चाहिए
आपको इतना तो आना चाहिए
पुल बना सकते हैं माना आप तो
पार उस पर चल के जाना चाहिए
आपसे ऊँची अना है आपकी
ख़ुद को भी तो आज़माना चाहिए
प्यार में जिसके हुए हो तुम फ़ना
लाज़मी है ये बताना चाहिए
थक गये कितने ही अपनी ज़ात से
सच से ही ‘भवि’ को मनाना चाहिए
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ग़ज़ल-
धूप अब मेरे घर नहीं आती
तीरगी भी नज़र नहीं आती
बात हर रोज़ उससे होती है
करनी है जो वो पर, नहीं आती
हैं समुन्दर में इतने तूफ़ां अब
नाव इक भी इधर नहीं आती
खेत बेचैन हैं मगर देखो
इस तरफ़ तो नहर नहीं आती
भागती दौड़ती रही हरदम
ज़िंदगी में ठहर नहीं आती
‘भवि’ अख़बार से है पूछे ये
क्या ख़ुशी की ख़बर नहीं आती
– शुचि भवि