ग़ज़ल
ग़ज़ल
जब अँधेरा सदा ही निशाना हुआ
रोशनी का कहाँ फिर ज़माना हुआ?
हर चुभन ख़ुश-मुलायम भली-सी लगी
दिल का जब से गुलाबों पे आना हुआ
जो इशारे पे बिछता रहा आपके
आज दिल वो फलाना-चिलाना हुआ
ज़िन्दग़ी के मसाइल लिए साज़ पर
तुम तरन्नुम हुए मैं तराना हुआ
नर्म-नाज़ुक-रँगीला बदन आज फिर
तितलियों के लिये ज़ालिमाना हुआ
हम भी क्या चीज़ हैं वो समझने लगे
जब से ग़ैरों के घर आना-जाना हुआ
आ गया दिल तो खुल के कहा कीजिये
ये भी क्या हर कहा सूफ़ियाना हुआ?
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ग़ज़ल
रोशनी का भला बखान भी क्या
दीप का लीजिये बयान भी क्या
वो बड़े लोग हैं, ज़रा तो समझ
उनके लहज़े में सावधान भी क्या
चाँद बस रौंदता है तारों को
आसमानों को संविधान भी क्या
आपसी गुफ़्तग़ू में आईने
पूछते हैं, ‘कटी ज़ुबान भी क्या’?
फिर बदन में जो गुदगुदी-सी हुई
भूख भरने लगी उड़ान भी क्या
पंच-परमेश्वरों की धरती पर
हो गये आज के प्रधान भी क्या
बन्द कमरों की खिड़कियों से न पूछ
था हवादार ये मकान भी क्या
क्यों न हम छूट के निभा ही लें
हर दफ़ा ये लहू-लुहान भी क्या
– सौरभ पाण्डेय