ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
अभी गर्दिश में तारे हैं
तभी तो बे-सहारे हैं
कभी मिलते न आपस में
नदी के दो किनारे हैं
लगाते भक्त जयकारे
चले मैया के द्वारे हैं
बुढ़ापे में ये बच्चे क्यों
नहीं बनते सहारे हैं
जो देखे ख़्वाब आँखों ने
तुम्हारे और हमारे हैं
फ़िज़ाओं में बहारों के
हसीं दिलकश नज़ारें हैं
न पूछो दिन, तुम्हारे बिन
सजन कैसे गुजारे हैं
नमी है आँख में मेरी
मगर आँसू तुम्हारे हैं
वफ़ा की राख से अब भी
भड़क उठते शरारे हैं
*********************
ग़ज़ल-
ख़ुशी की विदाई कराना नहीं
ग़मों का घरौंदा बनाना नहीं
कहे राधिका रँग लगाना नहीं
किशन पग को आगे बढ़ाना नहीं
मचल जाएगी दिल की हसरत वहीं
मिलाकर नज़र को झुकाना नहीं
तमाशा ज़माने में बन जाएगा
कभी दर्द दिल का बताना नहीं
कि माँ-बाप भगवान का रूप हैं
कभी उनके दिल को दुखाना नहीं
ये जुगनू ख़फ़ा देख हो जाएँगे
ज़मीं पर सितारे लुटाना नहीं
उजालों के सँग ‘रश्मि’ लाई सहर
अँधेरों को मिलना ठिकाना नहीं
– रश्मि सक्सेना