ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
जब भी आँखों में आसमां लाया
सब ये बोले, लो सिरफिरा आया
लोग जिनको फ़िज़ूल कहते थे
मैं वो रिश्ते भी घर उठा लाया
इक हक़ीक़त है रोशनी का ख़्याल
जो मेरे दिल में बारहा आया
यह भी शायद कि इक करिश्मा था
धूप की कोख़ में पला साया
तपते चेह्रे पे आंसुओं की फुहार
हमने ऐसे भी दिल को समझाया
मैं न हँसता तो बिखर ही जाता
वक़्त पर काम यह नुस्खा आया
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ग़ज़ल-
दोस्त ग़म में जुदा नहीं होता
उसके दिल में दग़ा नहीं होता
सारी दुनिया से वो ख़फ़ा हो मगर
दोस्तों से ख़फ़ा नहीं होता
जो कोई दर्द सिवा करता है
उसका कर्जा अदा नहीं होता
शहर को क्या हुआ मेरे जाने
अब कोई हादसा नहीं होता
कोई इंसान इंसां बन जाये
मोज़ज़ा यह सदा नहीं होता
होंगे लाखों ख़ुदा जहां में पर
माँ के जैसा ख़ुदा नहीं होता
– रमेश चन्द्र कपूर