ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
साथ पाया है तुम्हें जब भी बुलाया हमने
है ख़ुदा का ये करम तुमको जो पाया हमने
लोग नफ़रत ही लिए घूम रहे थे लेकिन
आईना सबको मुहब्बत का दिखाया हमने
दिल परेशान हुआ जाता था ग़म से अक्सर
ज़िन्दगी जीने की चाहत को जगाया हमने
बेवफ़ाई ही मिली सबसे यहाँ पर फिर भी
सारे रिश्तों को सदा दिल से निभाया हमने
रास्ते आज हमारे नहीं यूँ ही रोशन
ख़ुद को दिन-रात चराग़ों-सा जलाया हमने
अपनी हर एक ख़ुशी तुमपे लुटाकर सारी
दर्द इस दिल का ‘रमा’ सबसे छिपाया हमनें
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ग़ज़ल-
न आने का अच्छा बहाना तुम्हारा
हमें तो न भाता सताना तुम्हारा
ख़ताएँ हमारी सभी माफ़ कर दो
बहुत हो गया है रुलाना तुम्हारा
कसक दे गया है कहीं दिल के भीतर
बुलाकर हमें ख़ुद न आना तुम्हारा
हसीं शाम थी और रुत भी जवां थी
हमें याद है गुनगुनाना तुम्हारा
जुदा हो गई जिस्म से जान जैसे
ग़ज़ब ढा गया दूर जाना तुम्हारा
‘रमा’ चार-सू तुम ही तुम दिख रहे हो
हर इक फूल में मुस्कुराना तुम्हारा
– रमा प्रवीर वर्मा