ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
चमचमाते फर्श पर गिरता है पानी
छप-छपा-छप जाने क्या कहता है पानी
आज कुछ बूँदें ज़मीं पर बो रही हूँ
देखते हैं कब तलक उगता है पानी
गर्मियों की छुट्टियाँ हैं, हो प्रवासी
बादलों के देश में रहता है पानी
दूर गंगा के किनारे खिलखिलाता
जाने क्या कहता है क्या सुनता है पानी
रात को बच्चे ने पूछा टोक कर यह
माँ कहानी में ही क्यों बहता है पानी
एक दिन हद तोड़कर निकलेगा बाहर
आजकल तस्वीर में रहता है पानी
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ग़ज़ल-
दूर नयनों से हुए बादल घने हैं
हैं मनाते हम नहीं फिर भी मने हैं
हो गया है आज सूरज को भला क्या
आँख के भाले न जाने क्यों तने हैं
बोलता है चमचमाता यह पसीना
आग के गोले धरा पर सब बने हैं
ख़ुश्क कंठों में बची बस प्यास बाक़ी
प्राण रक्षा के तरीके सीखने हैं
बोलते हैं अब नहीं खग मृग यहाँ पर
मूक दर्शक वे कहाँ अब चीखने हैं
– पूनम अवस्थी बेबाक