ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
मैं शे’रों से सजाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
मैं लफ़्ज़ों से बनाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
मेरी सोचों में रहती है, ज़ेहन में रक़्स करती है
ग़ज़ल से जब बनाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
मैं जब मायूस होता हूँ, अकेले मैं जो रोता हूँ
बनाता हूँ मिटाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
तू हँसती, मुस्कुराती है, मेरे दिल को लुभाती है
मैं कुछ ऐसे सजाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
समझते हैं सभी ऐसा कि जैसे सामने है तू
मैं जब सब को दिखाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
मैं जब नींदों से जगता हूँ, जो सपनों से निकलता हूँ
तो होठों से बनाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
मैं जब भी चौंक पड़ता हूँ अकेली काली रातों में
सुलाता हूँ जगाता हूँ तेरी तस्वीर काग़ज़ पर
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ग़ज़ल-
ठीक है! उस को छोड़ देता हूँ
अपने दिल को मैं तोड़ देता हूँ
आज भी मैं तुम्हारे नम्बर को
डाइल कर कर के छोड़ देता हूँ
आपका दिल भी टूटा-टूटा है
लाइये ना! मैं जोड़ देता हूँ
और क्या चाहिए तुम्हें हमदम
ख़ून दिल का निचोड़ देता हूँ
जब मुझे उसकी याद आती है
तब मैं ऊँगली मरोड़ देता हूँ
इससे पहले कि मुझको छोड़ो तुम
मैं ही ख़ुद तुमको छोड़ देता हूँ
– नूर एन साहिर