ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
ख़ौफ़ का ख़ंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
चाहते हैं आप ख़ुश रहना अगर, तो लीजिये
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
पाप क्या और पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
फूल की ख़ुशबू ही तय करती है उसकी क़ीमतें
क्या कभी तुमने सुना है, ख़ार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब
सच तो बेचारा है दुबका, काँपता-डरता हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
वो हमारे हो गए ‘नीरज’ ये क्या कम बात है
ख़ुदग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ
*********************************
ग़ज़ल-
हमेशा बात ये दिल ने कही है
तुम्हारा साथ हो तो जिंदगी है
उछालो ज़ोर से कितना भी यारो!
उछल कर चीज़ हर नीचे गिरी है
किसी के दर्द में आँसू बहाना
इबादत है ख़ुदा की, बंदगी है
डरेगा बिजलियों से क्यों शजर वो
जड़ों में जिसकी थोड़ी भी नमी है
उजाले तब तलक ज़िन्दा रहेंगे
बसी जब तक दिलों में तीरगी है
कभी मत भूलकर भी आज़माना
ये बस कहने को ही दुनिया भली है
यहाँ अटके पड़े हैं आप ‘नीरज’
वहाँ मंज़िल सदाएँ दे रही है
*************************
ग़ज़ल-
कोयल की कूक मोर का नर्तन कहाँ गया
पत्थर कहॉं से आये हैं गुलशन कहाँ गया
दड़बों में क़ैद हो गये शहरों के आदमी
दहलीज़ खो गयी कहॉं,ऑंगन कहॉं गया
रखता था बाँध कर हमें जो एक डोर से
आपस का अब खुलूस वो बंधन कहाँ गया
होती थी फ़िक्र दाग़ न जिस पर कहीं लगे
ढँकता था जो हया, वही दामन कहाँ गया
बेख़ौफ़ हो के बोलना जब से शुरू किया
सच सुन के मारता था जो संगजन कहाँ गया
फल फूल क्यूँ रहें हैं चमन में बबूल अब
चंपा, गुलाब, मोगरा, चन्दन कहाँ गया
डूबो किसी के प्यार में इतना कि डूबकर
अहसास तक न हो कभी तन-मन कहाँ गया
*********************************
ग़ज़ल-
झूम कर आई घटा घनघोर है
डर रहा हूँ घर मेरा कमज़ोर है
मेघ छाएँ तो मगन हो नाचता
आज के इन्सां से बेहतर मोर है
चल दिया करते हैं बुजदिल उस तरफ
रुख़ हवाओं का जिधर की ओर है
फ़ासलों से क्यों डरें हम जब तलक
दरमियाँ यादों की पुख़्ता डोर है
जिंदगी में आप आये इस तरह
ज्यूँ अमावस बाद आती भोर है
इस जहाँ में तुम अकेले ही नहीं
हर किसी के दिल बसा इक चोर है
बात नज़रों से ही होती है मियाँ
जो ज़बां से हो वो ‘नीरज’ शोर है
**************************
ग़ज़ल-
तन्हाई में गाया कर
ख़ुद से भी बतियाया कर
हर राही उससे गुज़रे
ऐसी राह बनाया कर
रिश्तों में गर्माहट ला
मुद्दे मत गरमाया कर
चाँद छुपे जब बदली में
तब छत पर आ जाया कर
ज़िन्दा गर रहना है तो
हर गम में मुस्काया कर
नाजायज़ जब बात लगे
तब आवाज़ उठाया कर
मीठी बातें याद रहें
कड़वी बात भुलाया कर
‘नीरज’ सुनकर सब झूमें
ऐसा गीत सुनाया कर
– नीरज गोस्वामी