ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
जो तुमने ख़ताएँ कीं, इकरार करो यारो
नफ़रत न यूँ फैलाओ, बस प्यार करो यारो
घृणा के भँवर में तुम, देखो न फँसो ऐसे
नफ़रत का जो दरिया है, वो पार करो यारो
राहत से रहो तुम भी, औरों को भी रहने दो
जीना न किसी का यूँ, दुश्वार करो यारो
जो आग उगलते हैं, तुम दूर रहो उनसे
पैग़ाम से उनके अब, इनकार करो यारो
यूँ हिन्दू-मुसलमाँ का, झगड़ा न करो अब तुम
बस प्यार ही सबकुछ है, बस प्यार करो यारो
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ग़ज़ल-
कहने के लिए हक़ को, तैयार नहीं कोई
लिखने के लिए सच अब, अख़बार नहीं कोई
जीवन ये हमारा अब, तनहा ही गुज़रता है
दिलदार नहीं कोई, ग़मख़्वार नहीं कोई
क्यों रोज़ सताने को, है याद चली आती
क्या याद के दफ़्तर में, इतवार नहीं कोई
ये इश्क़ है साहब जी, इक बार ही होता है
जो रोज़ किसी से हो, व्यापार नहीं कोई
धर्मों की चरस पीकर, रहते हैं सभी याँ तो
देखो भी ज़रा इनको, बेदार नहीं कोई
मासूम की लाशों पर, है कुर्सी रखी उनकी
इस बात से मोनिस अब, इनकार नहीं कोई
– मोनिस फ़राज़