ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल- 1
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
क़त्ल करता है मुस्कुराहट का
उफ़्फ़ क़यामत है दर्द का झटका
सब गुज़रते हैं मेरे सीने से
मैं हूँ इक पायदान चौखट का
बादलों से बचा लिया मैंने
चाँद लेकिन शजर में जा अटका
एक मुद्दत हुई ये दरवाज़ा
मुन्तज़िर है तुम्हारी आहट का
पास हैं हम कि दूर क्या समझें
फ़ासला है तो एक करवट का
जिस्म बिस्तर पे ही रहा शब भर
दिल न जाने कहाँ-कहाँ भटका
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ग़ज़ल- 2
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1212 22/112
वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं
सोचता हूँ वफ़ा करूँ कि नहीं
तुझसे मिलकर तेरा न हो जाऊँ
सो बता तुझसे मैं मिलूँ कि नहीं
वो मुसलसल सवाल करता है
उसको कोई जवाब दूँ कि नहीं
उसने मुड़-मुड़ के बारहा देखा
मैं उसे देखता भी हूँ कि नहीं
मेरे ही जिस्म तक न पहुँचा नूर
सोच में है दिया जलूँ कि नहीं
ये ख़ुशी है छुई-मुई जैसी
मश्विरा दो इसे छुऊँ कि नहीं
ऐ ‘ज़िया’ तू है जुस्तजू मेरी
मैं तेरा इन्तिज़ार हूँ कि नहीं
– सुभाष पाठक ज़िया