ग़ज़ल की बात
ग़ज़ल की बात (किश्त 4)
साथियों ‘ ग़ज़ल की बात ’ की तीन किश्तों में हमने ग़ज़ल के सामान्य क्राफ्ट और ग़ज़ल की सतत , मिश्र और रूपांतरित लहरों के बाबत चर्चा की | इस चर्चा में हमने पहली पाँच हिलोर –
तराना – 122
झूमकर – 212
मुहब्बत का – 122 2
गुनगुनाओ – 212 2
हँसते रहो – 22 12
के विविध स्वरूपों का परिचय पाया | इन पाँचों में लाम यानि लघु स्वर एक ही है और उसकी स्थिति बदल देने भर से दूसरी हिलोर प्राप्त हो जाती है | लेकिन अन्य दो हिलोर में ऐसा नहीं है | ये दो हिलोरें हैं —-
उदास कभी – 12-1-12
न रहो सनम – 1-12-12
इनमें तीन छोटी बूँदें यानि लघु स्वर (लाम) और दो बड़ी बूँदें यानि दीर्घ स्वर ( गाफ़ ) है | इनकी सतत लहरों में भी पूर्ववत लहरों की तरह N – 4 – 3 – 2 आवृत्ति (दोहराव ) होता है | यथा –
12-1-12 12-1-12 12-1-12 12-1-12 = चार कड़ी
12-1-12 12-1-12 12-1-12 = तीन कड़ी
12-1-12 12-1-12 = दो कड़ी
और
1-12-12 1-12-12 1-12-12 1-12-12 = चार कड़ी
1-12-12 1-12-12 1-12-12 = तीन कड़ी
1-12-12 1-12-12 = दो कड़ी
इनके मिश्र रूप भी संभव हैं –
12-1-12 1-12-12 12-1-12 1-12-12 = चार कड़ी
12-1-12 1-12-12 12-1-12 = तीन कड़ी
12-1-12 1-12-12 = दो कड़ी
तथा
1-12-12 12-1-12 1-12-12 12-1-12 = चार कड़ी
1-12-12 12-1-12 1-12-12 = तीन कड़ी
1-12-12 12-1-12 = दो कड़ी
उपरोक्त लहरों के रूपांतरित रूप भी हैं | यथा –
1-12-12 –122 1-12-12—122
इन लहरों पर कुछ लोकप्रिय धुनें हैं —
1-12-12 1-12-12 1-12-12 1-12-12 = चार कड़ी
न तो कारवाँ की तलाश है न तो हमसफ़र की तलाश है
मुझे दर्दे-दिल का पता न था मुझे आप किसलिए मिल गए
1-12-12 –122 1-12-12—122
तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा
मुझे इश्क़ है तुझी से मेरी जाने जिंदगानी
लेकिन इन लहरों (बहरों) पर तक्ती’अ करने अथवा ग़ज़ल कहने से पहले हमें ग़ज़ल विधा की उन विशिष्ट बातों को जानना होगा , जो इसे हिंदी छंदों से अलग करती हैं |
क ) ज़िहाफत ( मात्रा – पतन ) — किसी भी शब्द को हम तीन तरह के वर्णों में बाँट सकते हैं |
* शुद्ध लघु – वे व्यंजन जिन पर अ , इ , उ ,ऋ की मात्रा लग रही हो और जो मुतहर्रिक
( स्वतंत्र लघु ) हो | इन्हें कोड 1 देंगे |
* शुद्ध गुरु – वे व्यंजन जिन पर शुद्ध रूप से आ , ई , ऊ , ए ऐ , ओ औ की मात्रा लग रही हो | यानि सकील | इन्हें कोड 2 देंगे |
* खफीफ( मिश्र गुरु ) – वे दो व्यंजन जिन पर मात्रा तो लघु लग रही हो किन्तु दोनों लघु एक साथ उच्चारित होकर गुरु की तरह गिने जा रहे हो | इन्हें शुद्ध गुरु की तरह कोड 2 देंगे |
शुद्ध लघु (लाम ) , शुद्ध गुरु ( गाफ़ ) और खफीफ(मिश्र गुरु ) एक नियत क्रम संयोजित होकर एक लय का निर्माण करते हैं | इस लय – पद को रुक्न (हिलोर ) नाम दिया गया है | इन्हीं लय पदों की निश्चित आवृत्ति ( दोहराव ) से लहर बह्र का निर्माण होता है |
उदाहरण –
त रा ना
1 —–2 —–2
1 —–2—– 2
1 —–2—– 2
1 —–2—– 2
स्पष्ट है कि 2 के नीचे तो शुद्ध गुरु और मिश्र गुरु दोनों आ सकते हैं
लेकिन 1 के नीचे केवल और केवल शुद्ध लघु ही आएगा |
यदि 1 के नीचे या 1 के खाने में कहीं भी शुद्ध गुरु ( सकील ) आता हो तो उसकी बड़ी मात्रा गिरकर छोटी हो जायेगी और उसे शुद्ध लघु की तरह माना जाएगा , उसका कोड 1 हो जाएगा क्यों कि वह 1 के खाने में है | इसे ज़िहाफत या मात्रा – पतन कहते हैं |
उदाहरण –
तुम्हें अप ना साथी बनाने से पहले
मेरी जा न मुझको बहुत सो चना है
इसे ध्यान से देखने पर
1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
का दोहराव लगता है अतः यहाँ ना , से और मे को 1 में खाने में आने के कारन ज़िहाफत की सजा मिलेगी | इनकी मात्रा गिर जाएगी |
तुम्हें अप न साथी बनाने स पहले
मिरी जा न मुझ को बहुत सो चना है
ख ) अलिफ़ – वस्ल – कई बार किसी शब्द के अंत में अलिफ़ या अ की मात्रा युक्त वर्ण होने पर उसके बाद कोई स्वर हो तो उसकी संधि अलिफ़ युक्त वर्ण के साथ हो जाती है |
जैसे –
नसीब ऐसा — जगा मेरा = नसीबे सा – जगा मेरा = 122 2 –122 2
शायद उनका आखरी हो ये सितम
शाय दुन का आखरी हो ये सितम = 21 22 21 22 21 2
कबूल आज दिल की दुआ हो गई है
कबूला ज दिल की दुआ हो गई है
122 122 122 122
अलिफ़ – वस्ल का प्रयोग स्वैच्छिक है यानि ज़रूरी नहीं का ऐसा किया ही जाए , लेकिन शायर जिस बह्र में ग़ज़ल कह रहा है उसकी माँग हो तो ऐसा किया जा सकता है |
ग ) इजाफत – जब कभी किसी संज्ञा शब्द के साथ संबध कारक की तरह दूसरा संज्ञा शब्द जुड़ता है तो दोनों के मध्य – ए – लगाया जाता है | जैसे –
सोज़ – ए – वतन < अलिफ़ –वस्ल भी लगा सकते हैं > = सोज़े वतन
ग़म – ए – इश्क़ < अलिफ़ –वस्ल भी लगा सकते हैं > = गमे इश्क़
याद – ए – चमन < अलिफ़ –वस्ल भी लगा सकते हैं > = यादे चमन
जान – ए – मन < अलिफ़ –वस्ल भी लगा सकते हैं > = जाने मन
यहाँ योजक ए और अलिफ़ – वस्ल के बाद लगी ए की मात्रा को गाफ़ यानि 2 भी ले सकते हैं और लाम = 1 के नीचे आकर इनकी ज़िहाफत हो जाने पर इन्हें 1 भी ले सकते हैं |
मुझे दर्दे उल्फ़त मिला है
122 122 122
घ ) अत्फ़ – जब दो शब्द युग्म की तरह होते हैं उनके बीच और(and) अथवा व का भाव होता हो तो – ओ – लगता हैं | जैसे –
ख़ार और खस = ख़ार – ओ – खस = खारोखस
रंज़ और ग़म = रंज़ – ओ – ग़म = रंजोगम
अत्फ़ वाले शब्दों को भी बह्र के अनुसार गाफ़ यानि 2 भी ले सकते हैं और लाम = 1 के नीचे आकर इनकी ज़िहाफत हो जाने पर इन्हें 1 भी ले सकते हैं |
साथियों ज़िहाफत , अलिफ़-वस्ल , इज़ाफ़त और अत्फ़ ही वो सशक्त पहलू हैं जो ग़ज़ल को आम छंदों से अलग विशिष्ट पहचान देते हैं , अतः इन पर ख़ूब अभ्यास करें |
सादर आभार |
– ख़ुर्शीद खैराड़ी