ख़बरनामा
दिल्ली पुस्तक मेले में मनीषा श्री की पुस्तक ‘ज़िंदगी की गुल्लक’ का विमोचन
हम माँ से दूर हो सकते हैं, मगर उसके प्रेम से नहीं। कुछ ऐसा ही सफर तय किया मनीषा श्री ने। अपनी मातृभूमि को भले ही उनको व्यवसायिक और पारिवारिक कारणों से छोड़ना पड़ा, मगर अपनी मातृभाषा को उन्होंने आज भी अपनी माँ के प्रेम की तरह खुद में कुछ ऐसा समा रखा है कि उसकी महक और खनक दोनों अपने साथ वह मलेशिया से भारत लेकर आई हैं।
14 जनवरी, 2016 को मनीषा जी की पुस्तक ‘ज़िंदगी की गुल्लक’ का विमोचन दिल्ली पुस्तक मेले में, लन्दन से आये प्रसिद्ध साहित्यकार श्री तेजेंदर शर्मा, गीत, ग़ज़ल और कविता को अपनी आवाज़ देकर चार-चाँद लगाने वाले ‘आवाज़ के जादूगर’ श्री शेलेन्द्र, उर्दू शायरी की रेख्ता वेबसाइट के संपादक जनाब अनवर साहब, ग़ज़लकार पत्रिका के संपादक श्री दीपक रूहानी एवं अन्य वरिष्ठ कवियों और साहित्यकारों की उपस्थिति में हुआ।
मनीषा श्री का कहना है, “ज़िन्दगी की गुल्लक’ न तो कहानियों का पिटारा है और न ही कविताओं का भंड़ार। यह तो उन कविताओं की कहानी है, जिसने कविता तो रच दी और खुद गुमनाम हो गयीं। एक आम लड़की के कुछ आम से अनुभव, जिन्हें वो पाई पाई अपनी ज़िन्दगी की गुल्लक में भरा करती थी। आज अपनी उसी गुल्लक की ख़नक वो इस किताब के माध्यम से आप सब को सुनना चाहती है। यह लड़की उतनी ही आम है, जितने के आप और हम। बस उन्हीं लम्हों को अपनी कविताओं में जोड़ा है, लेकिन इस बार यह कवितायेँ अकेले नहीं आ रही हैं। उन कहानियो के साथ आ रही हैं, जिनके कारण कवि की कलम को रफ़्तार और प्रेरणा मिली कविता लिखने की। पढ़िये किस्से कविताओं के ‘ज़िन्दगी की गुल्लक’ में।”
– प्रीति अज्ञात