बाल-वाटिका
होली आई
होली आई, होली आई,
रंग-भरी पिचकारी लाई।
गली-गली घूमें हुरियारे,
गर्दन में ढोलक लटकाए।
कोई नकली मूँछ सँवारे,
कोई जटाजूट में भाए।
और किसी ने रंग पोतकर,
सूरत अपनी अजब बनाई।
होली आई, होली आई।।
पिचकारी से रँग की वर्षा,
गले मिलें सब हर्षा-हर्षा।
लठ्ठमार है ब्रज की होली,
कहीं साज़ पर सुंदर बोली।
बाँट-बाँट कर जौ की बाली,
करते सब हैं गले-मिलाई।
होली आई, होली आई।।
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नीम हमारी
चहकें चिड़ियाँ प्यारी-प्यारी,
घर की शोभा नीम हमारी।
प्रात: प्रतिदिन दातुन करते,
मोती जैसे दाँत चमकते।
बीमारी को दूर भगाती,
दादी कहती यही हमारी।
हमें धूप से पेड़ बचाते,
अपनी छाँव-तले बिठलाते।
फल-फूलों से औषधि बनती,
रक्षा करते पेड़ हमारी।
इसका पात-पात उपयोगी,
कहते हमसे बाबा योगी।
पेड़ प्राणवायु देते हैं,
नहीं काटना लेकर आरी।।
– नीता अवस्थी