अच्छा भी होता है!
होम फॉर होमलेस
दो पंछी दो तिनके
कहो लेकर चले हैं कहाँ
ये बनायेंगे एक आशियाना
बहुत मधुर लगता है यह गीत, सुनने में भी और आशियाने की कल्पना सुन के मन के भीतर अंगड़ाई लेती है, वह भी यकीनन बहुत ही मधुर है। ‘घर’- जिंदगी की सबसे खूबसूरत कल्पना, जरुरत और उम्मीद। लेकिन हममें से कितने ऐसे खुश नसीब होंगे जिनकी कल्पना, उम्मीद की डोरी से बंध कर पूरी होती होगी एक मूलभूत जरूरत के रूप में? देखने को तो कंक्रीट का जंगल फैला हुआ है हमारे आसपास, जहां तक नजर दौडाओ, गगन को छूती इमारतें, लेकिन लोकडाउन के दिनों में हजारों-लाखों लोगों का हुजूम, सर पर गठरियां उठाये, नन्हे बच्चों को उंगली थमाए, सड़कों पर निकल पड़ा था जब, तो झुठला गए वो दिन में सच कि महानगरों में फैले इस विशाल कंक्रीट के मकानों के जंगल में कोई दो तिनके का आशियाना इनका भी है।
मजबूर हो गए थे हम सब, बेबसी से ताकते रहे उन्हें अपनी टी.वी. स्क्रीन पर नजरें गड़ाए, रोटी की तलाश में वह जिन घरों को छोड़ आए थे. उन्हीं छतों के नीचे अपने लिए जिंदगी ढूंढने निकल पड़े वह रोटी पीछे छोड़ के। वो सड़कों पर एक सैलाब की तरह उमड़े हुए थे और हम लोग मन में भय, आशंका और सहानुभूति की मिली जुली भावनाएं समेटे पर बैचैनी से टी.वी. के रिमोट को ताकते रहे।बिल्कुल ऐसी ही बेचैनी महसूस की 25 साल अमेरिका में रहने वाले नोवलिस्ट, लेखक वरिंदर सिंह परिहार ने, भारत में आकर झुग्गियां देखकर बेहद बुरी तरह से अभावग्रस्त लोगों को जीवन निर्वाह करते देख। मेरी उनसे मुलाकात महज एक इत्तफाक थी दैनिक भास्कर की ओर से करवाए गए एक आयोजन में दिसंबर 19 की एक शाम ‘लीजेंड ऑफ होशियारपुर’ के अंतर्गत शहर के उन लोगों को सम्मानित किया गया जो विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य कर रहे थे। समाज में निस्वार्थ भाव से सेवा करने के क्षेत्र में श्री वरिंदर सिंह परिहार को सम्मानित किया गया। उनके बारे में मंच प्रभारी के तौर पर बोलते हुए मुझे गर्व की अनुभूति हो रही थी और मेरा मन उनके लिए श्रद्धा भाव से भर गया। मंच पर आकर उन्होंने जो कुछ भी कहा, उसमें से एक वाक्य तो जैसे सदा के लिए मेरे स्मृति पटल पर अंकित हो गया।
बड़े ही सहज भाव से परिहार साहब ने कहा, दोस्तों झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को देखकर मैं यही सोचता हूं, और उम्मीद करता हूं कि आप भी मेरे साथ सहमत होंगे कि जीवन की तीन मूलभूत जरूरतों में से पहली दो की पूर्ति करने के लिए तो अक्सर हम सब दया भाव से किसी अभावग्रस्त व्यक्ति की ओर हाथ बढ़ा देते हैं, रोटी दे दी, पुरानी या कभी कभार नये कपड़े भी दे दिए लेकिन घर; घर देना, अपनी छत किसी के साथ बांटना या फिर किसी को घर बना कर देना, तकरीबन-तकरीबन हमारी सोच से बाहर ही रहता है।“
यकीन जानिए, दो पल के लिए जैसे सारा हॉल चुप हो गया, एकदम शांत, सबको कुछ पल के लिए अपने द्वारा किए गए दान-पुण्य के कार्य नगण्य लगने लगे। सच ही तो कहा था उन्होंने- घर बना कर देना किसी को, इसके लिए आर्थिक और मानसिक दोनों तरह की हिम्मत चाहिए। शुरुआत परिहार साहब ने अकेले की।मैंने जब हस्ताक्षर पत्रिका के लिए उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि पिछली सरकार ने गरीब परिवारों को अज्जोवाल गांव (जो कि होशियारपुर, पंजाब में स्थित है) में 4-4 भरले की प्लॉट अलॉट किए थे, लेकिन घर बनाने के लिए कोई लोन की व्यवस्था या सरकारी सहायता राशि न मिलने के कारण लोगों प्लॉटों पे झुग्गियां बनाकर रहने लग गए। परहार सर की नजर जब इन झोपड़ पट्टी पर पड़ी तो उन्होंने गरीब परिवारों को घर बनाकर देने का संकल्प कर लिया। एक परिवार के साथ उन्होंने दीवाली से पहले घर तोहफे के रूप में देने का वायदा किया और उस गरीब की आंखों में आंसू छलक आए जब दिवाली पर वह अपने घर का मालिक था।
उसी दिन उन्होंने उस बस्ती के चार और परिवारों को घर बनाकर देने का वायदा किया। यह कार्य वह अपने निजी साधनों से कर रहे थे। जब घर बने, सोशल मीडिया पर उन्होंने तस्वीरें डाली और अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में बैठे अपने दोस्तों से और समाजसेवी संस्थाओं से आगे बढ़कर इस नेक कार्य में मदद करने की अपील की तो कुछ दोस्त साथ जुड़े। उनके द्वारा शेयर की गई वीडियो को देखकर अमेरिका में बैठे सरदार मंजीत सिंह व उनके परिवार ने परहार साहब की ‘होम फॉर होमलेस’ मुहिम के साथ जुड़ने की इच्छा जाहिर की और उन्होंने सहयोग से दो और नए घर बने। अब तक 19 घरों का निर्माण हो चुका है। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि 2 साल में उनकी संस्था का लक्ष्य 250 घरों का निर्माण करने का है। घर बनाकर देने का यह बेमिसाल कार्यों में सितंबर 2018 में अज्जोवाल बस्ती से शुरू किया। उनकी संस्था में जगजीत सिंह अहुलवालिया पूर्व आई आर एस चंडीगढ़, प्रो.बहादर सिंह सुनेत, मनजीत सिंह( यू एस ए), सुरिंदर कौर पवार, मनजीत कौर गिल, अवतार सिंह आदमपुरी, धर्म निवास कौर खालसा और डॉ. मणिनाथ कौर फिनलैंड सहित 15 लोग शामिल हैं।
पांच मकान वरिंदर सिंह परिहार ने अपने खर्चे पर बनवाए। उसके बाद सोशल मीडिया पर एन. आर. आई. उनके साथ जुड़े। अब हाल में ही 4 घर धर्म निवास कौर खालसा और डॉ मणिनाथ कौर फिनलैंड वालों ने तैयार करवाए हैं। सर ने बताया कि एक घर की लागत तकरीबन दो लाख रूपये हैं। परिहार साहब का फोन नंबर है- 9417434352- उनकी संस्था ‘होम फॉर होमलेस’ को मैं हस्ताक्षर की पूरी टीम की ओर से अपनी शुभकामनाएं देती हूं। उनकी कोशिशों को सलाम कहते हुए एक शेर याद आ रहा है-
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
– मीनाक्षी मैनन