छंद-संसार
हिन्दी भाषा
(कुण्डलिया छंद)
हिंदी भाषा अति सरल, फिर भी अधिक समर्थ।
मन मोहे शब्दावली, भाव-भंगिमा अर्थ।।
भाव-भंगिमा अर्थ, सरल है लिखना-पढ़ना।
अलंकार, रस छंद, और शब्दों का गढ़ना।
ठकुरेला कविराय, सुशोभित जैसे बिंदी।
हर प्रकार संपन्न, हमारी भाषा हिंदी।।
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अपनी भाषा है सखे, भारत की पहचान।
अपनी भाषा से सदा, बढ़ता अपना मान।।
बढ़ता अपना मान, सहज संवाद कराती।
मिटते कई विभेद, एकता का गुण लाती।
ठकुरेला कविराय, यही जन जन की आशा।
फूले फले सदैव, हमारी हिन्दी भाषा।।
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हिन्दी को मिलता रहे, प्रभु ऐसा परिवेश।
हिन्दी-मय हो एक दिन, अपना प्यारा देश।।
अपना प्यारा देश, जगत की हो यह भाषा।
मिले मान-सम्मान, हर तरफ अच्छा-खासा।
ठकुरेला कविराय, यही भाता है जी को।
करे असीमित प्यार, समूचा जग हिन्दी को।।
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अभिलाषा मन में यही, हिन्दी हो सिरमौर।
पहले सब हिन्दी पढ़ें, फिर भाषाएँ और।।
फिर भाषाएँ और, बजे हिन्दी का डंका।
रूस, चीन,जापान, कनाडा हो या लंका।
ठकुरेला कविराय, लिखे नित नव परिभाषा।
हिन्दी हो सिरमौर, यही अपनी अभिलाषा।।
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला