कथेतर
हिन्दी की प्रमुख आत्मकथाएँ: उद्भव और विकास
– डाॅ. मुकेश कुमार
आत्मकथा किसी विशेष व्यक्ति द्वारा अपने जीवन के बारे में लिखा गया आख्यान, वृत्तांत या वर्णन है, जो बड़ी बेबाकी के साथ प्रस्तुत किया जाता है। प्राय: आत्मकथा लेखक कोई दार्शनिक, विचारक, चिंतक, समाज-सुधारक अथवा कोई उत्कृष्ट कलाकार होता है, जो अपने जीवन के अनुभवों, अनुभूत तथ्यों और मान्यताओं को समाज के सामने रखना चाहता है। आत्मकथा के चार तत्व होते हैं, यथा- तथ्य जीवन, स्वलेखन, तटस्थ एवं कलात्मकता। आत्मकथा का अर्थ- “किसी लेखक द्वारा अपने जीवन का जन्म से अंतिम क्षण तक की जिंदगी के संस्मरणों का यथार्थ चित्रण करना।”
हिन्दी की पहली आत्मकथा बनारसीदास जैन द्वारा लिखित ‘अर्द्धकथानक’ सन् 1641 ई. है। इस आत्मकथा का रूप पद्यात्मक है। इसमें (675) पद संकलित हैं। इस आत्मकथा का संपादन नाथूराम प्रेमी ने किया, जो पहली बार 1943 ई. में प्रकाशित हुई।
डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने आत्मकथा लेखन का प्रारम्भ यहीं से माना है। वे कहते हैं, “आत्मकथा लिखने वालों में जिस निरपेक्ष और तटस्थ दृष्टि की आवश्यकता होती है, वह निश्चय ही बनारसीदास में थी। उसने अपने सारे गुण-दोषों को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। यह आत्मकथा पद्य में लिखी गयी। इसके अतिरिक्त पूरे मध्यकाल में किसी अन्य आत्मकथा का उल्लेख नहीं मिलता।” कुछ विद्वान हिन्दी की सन् 1941 ई. बाबू श्याम सुंदरदास कृत ‘मेरी आत्म कहानी’ को हिन्दी की प्रथम आत्मकथा मानते हैं और कुछ हिन्दी की पहली गद्य-आत्मकथा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखी गयी सन् 1876 ई. में ‘कुछ आप बीती: कुछ जगबीती’ को मानते हैं। यह मात्र 2 पृष्ठों की अपूर्ण आत्मकथा है, जिसका प्रकाशन कविवचन सुधा भाग 8 में 22 वैशाख कृष्ण 4, 1932 संवत् में हुआ।
प्रारम्भिक काल
सन् 1641 ई. से 1827 ई. तक के समय को आत्मकथा का प्रारम्भिक काल कहा जाता है। जिसमें ‘बनारसीदास जैन’ से लेकर ‘श्रीधर पाठक’ तक की आत्मकथाओं का वर्णन है।
ऽ बनारसीदास जैन (1641) ‘अर्द्धकथानक’ पद्यात्मक प्रथम आत्मकथा मानी जाती है।
ऽ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1876) कुछ आप बीती, कुछ जगबीती (गद्यात्मक)
ऽ ठाकुर जगमोहन (1893) आत्माभिव्यक्ति
ऽ अम्बिकादत्त व्यास (1901) निज वृत्तांत
ऽ सत्यानन्द अग्निहोत्री (1910) मुझे देव जीवन का विकास
ऽ स्वामी दयानन्द (1917) जीवन चरित्र
ऽ श्रीधर पाठक (1927) स्व जीवनी
विकास काल
इसमें मुंशी प्रेमचन्द से लेकर बाबू गुलाबराय तक आत्मकथाओं का वर्णन है।
ऽ प्रेमचंद (1932) मेरा जीवन
ऽ महावीर प्रसाद द्विवेदी (1933) मेरी जीवन रेखा
ऽ मैथिलीशरण गुप्त (1936) अपने विषय में
ऽ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’- निराला की आत्मकथा
ऽ बाबू श्यामसुंदर दास (1941) मेरी आत्म कहानी
ऽ बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’- मेरी अपनी बात
ऽ राहुल सांकृत्यायन (1946) मेरी जीवन यात्रा
ऽ बाबू गुलाब राय (1946) मेरी असफलताएँ
उत्कर्ष काल
इस काल के अन्तर्गत सन् 1950 के बाद की हिन्दी आत्मकथाओं का वर्णन किया गया है।
ऽ यशपाल (1951, प्रथम भाग) सिंहावलोकन, (1952, द्वितीय भाग) सिंहावलोकन, (1955, तृतीय भाग) सिंहावलोकन
ऽ सत्यदेव परिव्राजक (1951) स्वतन्त्रता की खोज
ऽ देवेन्द्र सत्यार्थी (1952, भाग एक) चाँद सूरज की वीरन (1985- भाग दो) नील यक्षिणी
ऽ शांतिप्रिय द्विवेदी (1952) परिव्राजक की प्रजा
ऽ चतुरसेन शास्त्री (1956, भाग-एक) यादों की परछाइयाँ (1963, भाग- दो) मेरी आत्म कहानी
ऽ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (1958) मेरी अपनी कथा
ऽ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ (1960) अपनी ख़बर
ऽ हरिवंश राय बच्चन- क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969), नीड़ का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1978), दश द्वार से सोपान तक (1985)
ऽ वृन्दावनलाल वर्मा (1970) अपनी कहानी
ऽ रामविलास शर्मा (1983) घर की बात
ऽ शिवपूजन सहाय (1985) मेरा जीवन
ऽ रामदरश मिश्र (1984) जहाँ मैं खड़ा हूँ, रोशनी की पगडंडियाँ, टूटते बनते दिन, उत्तर पथ, फुरसत के दिन
ऽ फणीश्वरनाथ रेणु (1988) आत्म परिचय
ऽ कन्हैयाल मिश्र प्रभाकर (1989) तपती पगडंडियों पर पदयात्रा
ऽ डॉ. नगेन्द्र (1988) अर्धकथाम (1991) सहचर है समय
ऽ अमृतलाल नागर (1986) टुकड़े-टुकड़े दास्तान
ऽ रामविलास शर्मा (मुँडेर पर सूरज), देर सबेर, आपस की बातें
ऽ रविन्द्र कालिया (2000) गालिब छूटी शराब
ऽ कमलेश्वर- जो मैंने जिया (1992), याद का चिराग (1997), जलती हुई नदी (1999)
ऽ राजेन्द्र यादव- मुड़-मुड़ कर देखता हूँ (2001)
ऽ भगवतीचरण वर्मा- कहि न जाय का कहिए (2001)
ऽ भीष्म साहनी- आज के अतीत (2003)
ऽ अशोक वाजपेयी- पावभर जीरे में ब्रह्मभोज (2003)
ऽ स्वदेश दीपक- मैं मांडू नहीं देखा (2003)
ऽ विष्णु प्रभाकर- पंखहीन (2004), मुक्त गगन में (2004), पंछी उड़ गया (2004)
ऽ मिथिलेश्वर- कहाँ तक कहे युगों की बात (2011)
ऽ नरेन्द्र कोहली- आत्म स्वीकृति (2014)
ऽ अब्दुल कलाम- मेरी जीवन यात्रा (2015)
ऽ लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी- मैं हिजड़ा……..मैं लक्ष्मी (2015)
दलित आत्मकथा का विकास
मोहनदास नैमिशराय की सन् 1995 ई. में प्रकाशित ‘अपने-अपने पिंजरे’ हिन्दी की पहली दलित आत्मकथा है।
ऽ मोहनदास नैमिशराय- अपने-अपने पिंजरे भाग-1 (1995), अपने-अपने पिंजरे भाग- 2 (2000)
ऽ ओमप्रकाश वाल्मीकि- जूठन (1997)
ऽ श्योराज सिंह बेचैन- चमारथा (1998), बेवक्त गुज़र गया माली (2006), मेरा बचपन मेरे कन्धों पर (2009)
ऽ माता प्रसाद- झोंपड़ी से राजभवन (2002)
ऽ सूरपाल चौहान- तिरस्कृत (2002), संतप्त (2002), घूँट अपमान के
ऽ रमाशंकर आर्य- घुटन (2005)
ऽ तुलसीराम- मुर्दहिया प्रथम भाग (2010), द्वितीय भाग (2014), मणिकर्णिका (2013)
ऽ रूपनारायण सोनकर- नागफनी प्रथम भाग (2007), मेरे जीवन की बाइबिल (2007)
ऽ धर्मवीर भारती- मेरी पत्नी और भेड़िया (2009)
ऽ सुशीला टाकभौरे- शिकंजे का दर्द (2011)
प्रमुख महिला आत्मकथाकार-
हिन्दी की पहली महिला आत्मकथा लेखिका जानकी देवी बजाज हैं। जानकी देवी बजाज ने सन् 1956 ई. में ‘मेरी जीवन यात्रा’ शीर्षक से अपनी आत्मकथा प्रकाशित करवायी।
ऽ जानकी देवी- मेरी जीवन यात्रा (1956)
ऽ प्रतिभा अग्रवाल- दस्तक जिन्दगी की भाग-1 (1990), भाग-2 (1996) मोड़ जिन्दगी की
ऽ कुसम अंसल- जो कहा नहीं गया (1996)
ऽ कृष्णा अग्निहोत्री- लगता नहीं है दिल मेरा (1997), और……और…….औरत (2010)
ऽ पद्मा सचदेव- बूँद बावड़ी (1999)
ऽ शीला झुनझुनवाला- कुछ कही कुछ अनकही (2000)
ऽ मैत्रयी पुष्पा- कस्तूरी कुण्डल बसै भाग-1 (2002), भाग-2 गुड़िया भीतर गुड़िया (2008)
ऽ रमणिका गुप्ता- हादसे (2005), आपहूदरी (2014)
ऽ मन्नू भण्डारी- एक कहानी यह भी (2007)
ऽ प्रभा खेतान- अन्या से अनन्या (2007)
ऽ चन्द्रकिरण सोनरेंकसा- पिंजरे की मैना (2008)
ऽ सुशीला टाकभौरे (दलित महिला)- शिकंजे का दर्द (2011)
ऽ ममता कालिया- कितने शहरों में कितनी बार (2011) (वर्ष 2012 में सीता पुरस्कार दिया गया)
ऽ चन्द्रकान्ता- हासिये की इबारतें (2011)
ऽ सुषम बेदी- आरोह अवरोह (2014)
ऽ निर्मला जैन- ज़माने में हम (2015)
तथ्यात्मक बिन्दु
ऽ हरिवंशराय बच्चन को ‘दशद्वार से सोपान तक’ आत्मकथा पर सन् (1992) में सरस्वती सम्मान दिया गया।
ऽ गर्दिश के दिन (1980) शीर्षक से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के 12 रचनाकारों का आत्मकथ्य एक साथ प्रकाशित हुआ, जिसके संपादक कमलेश्वर थे।
ऽ मुक्तिबोध की आत्मकथा (1984) के रचनाकार विष्णुचन्द्र शर्मा हैं।
ऽ हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा को ‘स्मृति यात्रा यज्ञ’ कहा है।
ऽ बनारसीदास जैन कृत अर्द्धकथानक (1641) पहली पद्यात्मक आत्मकथा मानी जाती है।
ऽ लेखिका कृष्णा अग्निहोत्री को उनकी आत्मकथा ‘लगता नहीं दिल मेरा’ से विशेष ख्याति प्राप्त हुई है।
ऽ मैत्रयी पुष्पा की आत्मकथा ‘कस्तूरी कुण्डल बसै’ उतनी ही सर्जनात्मक है। कस्तूरी मैत्रयी पुष्पा की माता का नाम था। उसी नाम से यह आत्मकथा लिखी।
ऽ राजेन्द्र यादव भी आत्मकथा ‘मुड़-मुड़ के देखता हूँ’ स्वयं उन्हीं के शब्दों में आत्मकथ्यांश है। अर्थात् पूर्ण आत्मकथा नहीं हैं।
ऽ विष्णु प्रभाकर ने (पंखहीन, 2004), मुक्त गगन में (2004)और पंछी उड़ गया (2004) शीर्षकों से तीन खंडों में लिखकर पूरी की गई है।
ऽ एक अंतहीन तलाश (2007) डॉ. रामकमल राय की मृत्युपरान्त प्रकाशित आत्मकथा है। यह आत्मकथा राय की संघर्ष गाथा ही नहीं है, उसमें जीवन संग्राम का दस्तावेज भी है।
ऽ पिंजरे की मैंना (2008) चन्द्रकिरण सोनरेक्सा की आत्मकथा है। जिसमें उन्होंने अपनी पचहत्तर साल के लेखनकाल का बड़ी आत्मीयता के साथ चित्रण किया है।
ऽ ‘पानी बीन मीन पियासी’ (2010) प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर की आत्मकथा का पहला भाग है, जिसे उन्होंने उपन्यास विधा में प्रस्तुत किया है।
ऽ ‘कहाँ तक कहें युगों की बात’ (2012) प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर की आत्मकथा का दूसरा भाग है।
ऽ आलोचक का आकाश (2012) मधुरेश की आत्मकथात्मक संस्मरण शैली में लिखी कृति है।
ऽ सूर्य प्रसाद दीक्षित ने सन् 1970 ई. में ‘निराला की आत्मकथा’ लिखी।
ऽ पंत ने ‘साठ वर्ष: एक रेखांकन’ शीर्षक से आत्मकथा लिखी।
संदर्भ-
1. संपा. डॉ. नगेन्द्र, हिन्दी साहित्य का इतिहास।
2. डॉ. रामचन्द्र तिवारी, हिंदी का गद्य साहित्य।
3. डॉ. विवेकशंकर, हिन्दी का गद्य साहित्य।
4. गोविन्द पाण्डेय, हिन्दी भाषा एवं साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास।
5. पुनीत कुमार राय, वस्तुनिष्ठ हिन्दी
– डाॅ. मुकेश कुमार