स्मृति
हिंदी का संसार कुछ निष्प्रभ हो गया
वर्ष 2019 का प्रथम पख हिंदी साहित्य का सबसे बुरा दौर साबित हुआ। कृष्णा सोबती का जाना जहाँ हिंदी साहित्य के एक युग का अवसान है, वहीं दूसरी ओर अर्चना वर्मा जी के जाने से हुई क्षति की भरपाई नहीं की जा सकती। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में मिरांडा हाउस की शिक्षिका होने के साथ ही, 1986 से लेकर 2008 तक ‘हंस’ पत्रिका की संपादन सहयोगी, ‘कथादेश’ के अलावा औरत: उत्तरकथा, अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य, देहरि भई बिदेस के प्रकाशन में भी संपादन सहयोगी के रूप में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
हिंदी के सुधि पाठक अभी इस सदमे से उबर भी न सके थे कि ठीक उसी वक्त आलोचना के शिखर पुरुष एवं आधुनिक कविता की व्यावहारिक आलोचना की सर्वाधिक लोकप्रिय किताब ‘कविता के नए प्रतिमान’ लिखने वाले डॉ. नामवर सिंह का भी जाना हिंदी साहित्य को निष्प्रभ कर गया।
2019 के मार्च के दुर्भाग्य में अभी भी बहुत कुछ शेष बचा था, यह जाते जाते अपने साथ हिंदी की जानी-मानी लेखिका, संपादक और संचयनकर्ता रमणिका गुप्ता को अपने साथ ले गया……….. पीछे छूट गए हमारी तरह के सुधि-पाठक, उनसे जुड़ी स्मृतियों को साझा करने के लिए।
‘हस्ताक्षर’ परिवार हिंदी के साहित्याकाश के चमकते सितारों अर्चना वर्मा, कृष्णा सोबती, नामवर सिंह और रमणिका गुप्ता के जाने से शोकाकुल हो आप चारों दिग्गजों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
– टीम हस्ताक्षर