हायकु
हायकु
रंग बिखरा
खिला मन आँगन
आया सावन
नाचे मयूर
बरसता सावन
हर्षित मन
खोल नयन
नव अंकुर जागे
शिशु ज्यूँ जन्मे
भरा आँचल
फिर सरिता का
बूँदें हर्षाया
झुलसे दुर्वा
धरती अकुलाई
जेठ रुलाया
भाई का मान
बहन का दुलार
रेशमी तार
गाए फुहार
सखी, गीत हजार
आई बहार
बूँद बूँद यूँ
गिरे पात पर
हार के मोती
तपित मन
नेह बन बरसो
म्हा हिय ड्योढ़ी
जाति धर्म का
बंधन नहीं जाने
दोस्ती का नाता
– महेश्वरी कनेरी