हायकु
हायकु
कृष्ण सुदामा
अमीरी-गरीबी के
भेद से परे
जननीवत
करती जो पोषण
गौ उपेक्षिता
माता कहते
गौ पालते क्यों नहीं
भूखी फिरती
यंत्र प्रयुक्त
कृषि बनी उद्योग
बछड़े मरते
वर्षा के गीत
गाने लगे बादल
उमड़ी प्रीत
घिरी घटाएँ
स्याही जैसे बादल
जिया डराएँ
झंडा लहरे
तीनो रंग मन में
उतरे गहरे
नील गगन
गोद में खिला रहा
ध्वज सुअन
बूंदें बरसीं
धरती के आँगन
हर्ष उल्लास
ओस की बूंद
मोती-सी चमकती
हिली पंखुरी
बया घोंसला
तरु की डाल पर
प्रकृति हँसी
– डॉ. रंजना वर्मा