हायकु
हायकु
निस्तेज-सा है
तेरे आगमन से
नभ का चाँद।
बिन सावन
स्मृतियाँ बरसतीं
मन आँगन ।
हृदय हूक
कलमुँही कोयल
हौले से कूक।
तुम्हारा होना
दिल के घर पर
जैसे छत हो।
तुम्हारा नाम
झील ने जब सुना
कमल खिले।
पूजा जो तुझे
बन गया आखिर
तू भी पत्थर।
ढ़लती रात
सपने दोहराते
तुम्हारी बात।
हृदय मीन
जल छोड़ चाहे
प्रेम का जाल।
बाँच न सकी
गल गया था ख़त
शब्द गीले थे।
गिरता झरना
घूँट घूँट चखती
प्यासी नदियाँ।
शाम जो हुई
मुझसा दिनकर
याद में डूबा।
मलती धरा
धूप का उबटन
छुड़ाती ठंड।
बाल सूर्य ने
गिराया कुमकुम
सवेरा हुआ।
पाँव पसारे
रहते नयन में
स्वप्न तुम्हारे।
गीली है घास
उदास चाँद रोया
तमाम रात।
– बुशरा तबस्सुम
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