हायकु
मत उधेड़ो
कर रही हूँ रफू
धुंधली यादे
माँ का आँचल
जीवन की तपिश
शीतल छाँव
छाँव बैठना
पितरों की याद में
वृक्ष लगाना
बरसे मेघ
प्रसव को तैयार
जननी धरा
झाँकती हया
चौखट की ओट से
गोद भराई
कोई भी जीते
हारती है सदा माँ
यहाँ या वहाँ
गुलाब जाने
सुरक्षित भविष्य
काँटों के बीच
कल की छाँव
आज खा रही धूप
चलती आरी
हिन्दी हिन्द की
जन जन की भाषा
घुट्टी में मिली
फूस की जान
बाबूजी की खटिया
घर की ओट
– शैलेन्द्र सिंह शैल