हाइकू
हाइकू
ज़िद्दी-सा ख़्वाब
सिकन्दर के जैसा
विजयपथ पे
तनहा लड़की
सपनों को बुनती
मीरा-सी रंगी
बूँदें बरसीं
घनघोर घटा-सी
नैनो में बसी
पतझड़ में
खिला अकेला पुष्प
ताके बसंत
कुछ जज़्बात
क़लम से उतरे
पिघला दिल
काँटो में खोजे
प्रीत के उपवन
कैक्टस मन
कवि कैक्टस
अन्याय तपिश में
डट के खड़े
मरु-भूमि में
जीवटता बाँटे है
नन्हा कैक्टस
वो परछाई
धूप में सुलगती
छाँव में खोई
सपने रेत
बिखर गऐ धम्म
व्याकुल मन
– हरदीप सबरवाल
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