हाइकू
हाइकू
ऐ चाँद सुन
मेरी अंतर व्यथा
तूझसे कहूँ
प्रीतम मेरा
मुझसे है बिछड़ा
मन बेकल
ये दिल मेरा
बेचैन है रहता
उनके बिना
पागल मन
देखता राह उसकी
बाँहे फैलाये
उसके बिना
मेरा जिया न लगे
जाऊँ कहाँ मैं
संदेशा भेजूँ
मिलन हो जाये
मन हर्षित
एक बार ही
मिलने तो आओ
बात तो मानो
आओगे जब
नयनो में रखूँगी
छोड़ूँगी नहीं
साक्षी बनेगी
शुभ्र चाँदनी रात
शुभ मिलन
– डॉ. विभा रंजन कनक