हाइकू
हाइकू
रात के माथे
आलोकित है चाँद
बिंदी-सा शांत।
एक तुम ही
हृदय तक गये
भावना गहे।
प्रेम-पीड़ा में
सबकुछ दलना
बस गलना।
न बतियाना
न ही पूछना, बस
महसूसना।
सतत पीड़ा
सुख विरल कर
करती क्रीड़ा।
न तुम आते
न लाते मुहब्बत
न पछताते।
प्रेम में होना
नंदन-कानन में
बीज-सा बोना।
प्रेम को खोना
ऊसर-उजड़ में
मेघ-सा रोना।
प्रेम न होना
आत्म-हीन बन
देह को ढोना।
दरक गया
वाणी का दाड़िम
प्रेम पक गया।
– दिनेश सूत्रधार
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