हाइकू
हाइकू
चन्द्रमा आ के
चाँदनी की ओट में
घरों में झांके।
बूढी चौपालें
बस पंच पड़े हैं
खटिया डालें।
पत्ते झरे थे
टहनियाँ चुप हैं
हरे-भरे थे।
आरी की याद
सिहर गये पेड़
वर्षों के बाद।
नदी ने लिखा
पाट के पृष्ठों पर
दूब-सा दिखा।
तटबंध जी
नदी के पढें सभी
अनुबंध भी।
डाली, दुखड़े
काली आँधी से कहे
पेड़ उखड़े।
ऐनक चढ़ा
सूरज देख रहा
दिन का लिखा।
नाव खो गयी
टेढी चाल नदी की
बालू बो गयी।
आज ही चल
नुकीले पत्थरों पे
क्यों कल-कल।
– भीकम सिंह
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