किसने रची?
पंखों पर रंगोली
तितलियों के ?
उछाले स्वप्न
जाकर बन गये
इन्द्रधनुष
संवेदना के
पद चिह्नों की छाप
कविताओं में
मन की आग,
सिंहासनों की चाल
विनाशक है।
टूटे सपने
चटख़ते दर्पन
जुड़ते नही
नकली आँखें
असली चेहरों पर
टिकती नही
आरे का दिया
रात भर सुनता
मिलन गीत
भोर की ओस,
सुमनों के होंठ से
हुए बेहोश
– साकेत कुमार सेन