हाइकु
प्रेम की पेंग
चैटिंग से लेकर
स्ट्रीमिंग तक
प्यार का सिला
ऐसे उधड़ा मन
कभी न सिला
बौनों ने खींचा
बौनी व्यवस्थाओं का
बड़ा-सा चित्र
ख़ून का रिश्ता
मौक़े पे कर गया
रिश्ते का ख़ून
वसन्त बोला
हो इश्क़ मुबारक
भू शरमाई
ज्ञान से शब्द
अनुभव से अर्थ
समझ आये
किताबें रोयीं
याद कर ख़ुद का
सीने पर सोना
तुम्हारे बाद
ख़्वाब भी बेरंग हो
बैरंग लौटे
आज आना ना!
ख़्वाब में भी तो मिले
सदियाँ बीतीं
स्त्री में ढूँढना
बनावट के साथ
बुनावट भी
सूर्य-सा चाहो
यदि चमकना तो
वैसे तपना
सबकी थाली
निवालों से भर दे
कुछ कर दे!
हाथों ने नहीं
नज़रों ने रँगा है
रंग नया है
– मीनू खरे
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