हाइकु
हाइकु
मौसम सर्द
कोहरे से डरते
औरत-मर्द।
ओस की बूँदें
मोती बन चमकीं
बातें नभ की।
धूप सुहानी
छतों पर रौनक
किस्सा-कहानी।
कौन नहाये
जाड़ा गीत सुनाये
धूप सुहाए।
झूमता रहा
सुख की तलाश में
घूमता रहा।
बच्चों के साथ
नया साल मनाया
घर सजाया।
कभी धूप में
कभी छाँव में रहो
गाँव में रहो।
वसुधा तपे
वृक्ष के नीचे बैठी
माँ माला जपे।
फुटपाथ में
रावण बिक रहा
सत्य की जीत।
दिन में शाम
दृश्यता शून्य हुई
जाड़े का काम।
– चक्रधर शुक्ल
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